Wednesday 30 November 2011

अब सुनो हनुमंत , सीता के लिए कहूँ , 
                    विभीषण बोलते हैं, पर वाणी काँपती .
दशग्रीव हर कर , सती सीता साथ लाया ,
                    मंदिर चंचल  हुए , धरा यहाँ  डोलती .
सागर भी क्रुद्ध हुआ , अति वृष्टि होने लगी,
                    अग्नि अति क्रुद्ध हुई ,जीवन को सोखती.
झंझावात के ही मध्य , अशोक वन में गया ,
                    तब से ही नभ तले ,राम-नाम  बोलती.


कहते हैं विभीषण, अशोक वन की राह ,
                   हो कर के ध्यान मग्न,सुनते हनुमान. 
पूरी राह कह कर ,  चुप  हुए संत श्रेष्ठ ,
                   रुदन  में  विभीषण  , काँपते  हनुमान.       
बलशाली जम्हाई ले, वज्रांग तन गये ,
                   लोल  हुए अंग - अंग , हांफते हनुमान.
मित्र श्री !उचित लगे , उसे ही आप कीजिये ,
                    लेकर  के  अनुमति  ,  बढ़ते  हनुमान .
   
कपि ले के सूक्ष्म रूप, उतरे भूधर पार ,
                    पहुंचे सघन वन , जो अतीव भारी है.
गगन सुभेदती है, बहु उच्च  विटपमाल,
                    पन्नग सी हरियाली,अति मनोहारी है.
कई-कई पुष्प रूप, कई-कई फल रूप ,
                     भ्रमर  गुंजार  तहाँ , बहु  रसकारी  है. 
दिवस में रजनी की  , गति जहाँ रहती है ,
                      पग-पग  निशाचर , खूब भयकारी है.


Tuesday 29 November 2011

नित्य कर्म से निवृत्ति,शीघ्र कर विभीषण ,
                 सरोवर  तट  पर , हंस  सम दिखते .
अश्व - दश साध कर,संध्या-वंदन करते ,
                 अर्चन समय पर ,पुष्प  सम खिलते.
गुरु-गौरी पूज कर , राम-नाम भज कर ,
                 कपि-वर भेंट कर  , मित्र सम लगते.
गुणवंत हनुमान , तत्काल बोल उठे ,
                 कहो मित्र आप कैसे,दुखी सम रहते ?


भूपाल जिस देश  का  है कुत्सित-अहंकारी  ,
                   कल्पित है सुख वहाँ , सत्य है बुद्धिमंत.
है उत्कोची सभासद , कर्मचारी - अधिकारी ,
                    जीवन अशांत वहाँ , सच कहूँ गुणवंत .
स्वेच्छाचारी जन-वृन्द , भ्रष्ट-मूल्य में जिये ,
                    ऐसा राज लुप्त होगा,देखिये ज्योतिर्वंत 
आह लम्बी भर कर, बोल गये विभीषण ,
                    अग्रज  हैं दशग्रीव ,  दुख  है  हनुमंत .


अपहरण - तस्करी,लूट जहां गर्व हेतु,
                     कपि-श्रेष्ठ समझिए , तत्र मुख्य स्वार्थ है.
शोषक व अत्याचारी , पाते हैं प्रतिष्ठा जहाँ ,
                     प्रज्ञा  वहाँ  मर जाती , तत्र  तु  कदर्थ  है.
दश अश्व मुक्त कर, तन - रथ डोलता है ,
                      मार वहाँ मुख्य होता , तत्र सर्व व्यर्थ है.
सीता सती हरी जाती , नारी वस्तु मानी जाती,
                       वहाँ सुख - शांति नहीं , तत्र तु अनर्थ है.

Monday 28 November 2011

प्राची अनुराग लिए , स्वर्ण किरणें फेंकती,
                      भाग  फटे जाग  हुई , विभीषण  जागते .
राम-राम हरे राम , हरे-हरे राम-राम,
                       कोमल सुकंठ लिए , नाम श्री अलापते.
द्विज रूप धार कर, नम्र हुए हनुमान , 
                       चकित हैं विभीषण, विस्मित विराजते .
आप कौन द्विज श्रेष्ठ , हर हैं या हरि मेरे ,
                       राम  हैं या  रमापति ? पूछ  के दुलारते.


नम्र होके बोले कपि , क्षमा करें संत श्रेष्ठ ,
                        द्विज  नहीं  वानर हूँ, यहाँ  मैं प्रवासी हूँ .
हर नहीं हरी नहीं , नहीं राम रमापति ,
                         राम - दूत हनुमान , भारत  निवासी हूँ .
सरल पुनीत आप , राक्षसों के मध्य कैसे ?
                         यही सब जानने को,अतीव जिज्ञासी हूँ. 
मेरे स्वामी राम जी हैं, सीता उनकी प्रेयसी ,
                         सीता शोध के लिए ही,पूर्ण मैं प्रयासी हूँ.


नम्र होके विभीषण , बोले हनुमान से ,
                          आप  मेरे अतिथी हैं , श्रम  परिहारिए .
नित्य कर्म निवृत्ति ले, संध्या-वंदन कर लूं ,
                          राम -नाम ले ही लूं,अल्पाहार कीजिए.
आप जिस कार्य हेतु , यहाँ तक आये हैं ,
                           संकल्पबद्ध  उसमें , सहयोगी जानिए.
धीर-बुद्धि विभीषण , यह कह बढ़ गये,
                            डूब गये चिन्तना में,ऊभ-चूभ मानिए.                  

Sunday 27 November 2011

ऊंचे- ऊंचे सदन जो, गगन को भेदते,
                      पूर्ण देख आते मानो, कभी नहीं देखे हैं.
भांत-भांत लता कुञ्ज , सघन विटप माल .
                      पूर्ण  घूम आते मानो, कभी नहीं घूमे हैं.
भूतल में कक्ष बने, गहरे जो गह्वर थे ,
                      पूर्ण फिर आते मानो,कभी नहीं फिरे हैं.
ऐसा कोई कोना नहीं , जहाँ माँ को देखा नहीं ,
                      देखते हैं ऐसे मानो, ,कभी नहीं देखे  हैं.


मंदिर दशानन का ,भौतिकता से पूर्ण है,      
                       भित्ति-गच स्वर्ण में जो,नील मणि मुख्य  है.
वातायन-सुद्वार के , गंध के कपाट हैं,
                       सूक्ष्म  हुई  नक्काशी में , रक्त मणि मुख्य  है.
वर्तुल सोपान बने,  पन्नग से रचित जो,
                        छाजन पे  चित्रकारी , मुक्ता - मणि मुख्य  है.
कई-कई स्वर्ण -कोश , कई-कई रजत कोश,
                        अनेक  हीरक  कोश , पदम् - मणि मुख्य  है.


देख कर विलम्ब होता ,शीघ्र बढे हनुमान ,
                          सारे कक्ष छान लिए , महतारी नहीं है.
सुसज्जित शयन कक्ष , सुनिर्मल पर्यंक ले,
                          दशानन निद्रा-मग्न ,पुनिताई नहीं है.
अन्य एक मंदिर में , भद्र - जन निद्रा मग्न ,
                          हरि - हर शोभित जो , कुटलाई नहीं है.
राम दूत चिन्तते हैं  , सीता शोध कार्य हेतु ,
                          हरि- भक्त  मित्रता  में , कदराई नहीं है.               

Friday 25 November 2011

नगर के चहुँ ओर , हलचल अतिशय ,
                    सुभट  के  दल  से है  ,रक्ष - देश  रक्षित .
गज-अश्व उष्ट्र -खर, सुरथ की सवारी है,
                     दौड़ रहीं डोलियाँ हैं , दीन यहाँ शोषित .
अति लोल ललनाएं , रुचिर श्रृंगार किये,
                     मदन संचार  करे , मार  हुआ  वन्दित.
नर सब भीम काय , भोग की ही लिप्सा में ,
                     मद्यपान  में ही रत , धर्म हुआ उपेक्षित .


हनुमान रुककर , क्षण भर सोचते हैं,
               यत्र-तत्र स्वर्ण-सज्जा,भोग की ही संस्कृति .
रक्ष-नर हिंसा रत, अहिंसा पानी भरती ,
                दया- धर्म -प्रेम नहीं , विकृति  ही  विकृति.
रक्ष- देश ललनाएं , उन्मुक्त हो के रहती,
                लाज- शर्म -त्याग नहीं,  है मकारी प्रकृति.
आतंकित  नर-वृन्द  , भयभीत  देव-वृन्द,
                दशानन  का  देश है  ,  दमन  की  आकृति.


लंक- देश में पतित , देख कर मूल्य को,
                 क्रुद्ध हुए कपि श्रेष्ठ , छूट गयी लघुता .
पूर्व रूप पाते ही , देख लिया प्रहरी ने, 
                 अस्त्र-शस्त्र ले के दौड़े,उनकी ही प्रभुता.
कपि कहाँ चुप रहे ,छीन लिए अस्त्र-शस्त्र,
                   इक्षु दंड सम चीर , बताई दी  गुरुता .
पार्श्व में प्रासाद देख ,पुनः लिया रूप लघु , 
                   वेग से प्रवेश कर ,काम ले ली दक्षता.                 

Wednesday 23 November 2011

मार कर के फर्राटा , वीर गया उस पार .

मार कर के  फर्राटा ,  वीर गया  उस पार ,
                   भूधर  की  तलहटी , बाज सम उतरा .
तोड़  कर के सन्नाटा , कपि चढ़ा भूधर पे,
                   उच्च एक श्रृंग पर , वह्नी  सम  दहका.
मार कर के घर्राटा , दृष्टि डाली चहुँ ओर,
                   हरी-भरी प्रकृति मे ,मणि सम चमका.
दूर से आया चर्राटा , जहाँ स्वर्ण नगरी थी,
                   तमतमा  कर बढ़ा , रवि  सम  दमका . 


स्वर्ण मढ़ी लंका खड़ी ,पग-पग रत्न जड़े ,
                   आभ पड़े नगरी पे, चक्षु चुंधियाती है .
बहु पीन परकोट , खूब फैले राज पथ ,
                   फणी सम वीथियों  में, बुद्धि चकराती है  .
यत्र-तत्र ताल कूप , तडाग बाग़ नालियाँ ,
                    झरनों की झरन में , वृष्टि  मंडराती  है.
ठौर-ठौर मधुशाला , ठौर-ठौर वधशाला ,
                    देख भ्रष्ट मर्यादा को,आत्मा तलफाती है.


लेकर के सूक्ष्म रूप , नर-नारी बीच पैठ ,
                  गतिविधि  देख कपि , सुचर  से  बढ़ते.
द्वार-द्वार पहुँच के, पोल-पोल पैठ  कर ,
                   कक्ष-कक्ष छान कर, शोधक से लगते.
फिर नयी ठोर दिखे, फिर नयी आस बंधे ,
                     तत क्षण दौड़ जाते, धावक से लगते.
 मिले नहीं महतारी, आँखे भर-भर आती ,
                    वक्ष बैठ-बैठ जाता , बालक से लगते .



Tuesday 22 November 2011

अरि कंपकंपाता है.







ब्रह्मा आये भारती ले , लक्ष्मी-पति रमा सह,
                  उमा महेश पहुँचे , पहुँचे हैं  गणेश .
सुरपति हर्ष करे, देवियाँ विरुद कहे,
                देव मुनि वृष्टि करे,पुष्प लिए  विशेष  . 
परीक्षा लेली देव ने, उतीर्ण हनुमान हैं ,
                मंद -मंद उमा हँसे , पुलकित महेश .
सुरसा कहे  जाइए , प्रभु जी काज साधिए,  
               हृदय में संजोइये ,  रघुकुल नरेश .


सागर के मध्य रह , चेटक करे लंकिनी ,
                नभचर मुग्धकर, पकड़ के खाए है.
मथ डाले पक्ष उनके, कंठ को मरोड़ डाले,
                अंग सब चट कर , रक्त से नहाए है.
पूर्व से ही हनुमान , सावधान हो गए,
               चेटक चला ही नहीं,थाप खाए जाए है. 
देखा वर वीर ने भी , काज में  विलम्ब  होए ,
                मुष्टिका प्रहार कर , लंकिनी सुलाए है.
                









Monday 21 November 2011

पुनीत काज के हेतु , समर्थ हनुमान.

अर्चन सामग्री लेके, सिक्ता-शिव रच कर ,
                सागर किनारे राम, करते  गुरु  ध्यान .
मुद्रा लगी मंत्र गूंजे ,सागर ने चुप्पी साधी .
                भागे-दौड़े आये वीर ,अनुज करे प्रणाम .
अर्चा कर समर्पित , सम्मुख हो बोले राम ,
                सीता-शोध करने को , कहिये अब नाम .
सब वीर मिल कर , बोले हाथ जोड़ कर,
                 पुनीत काज के हेतु   ,  समर्थ  हनुमान. 
                 
राम का आदेश पाके , कपि चढ़ा श्रृंग पर ,
           कपि ने उछाल भरी ,श्रृंग डगमगाता  है.  
नभचारी हनुमान , तीर सा बढ़ा हैं लंक ,
           वीरवर  समूह  में , जोश  भरभराता है.
राम मुग्ध होके देखे , लक्ष्मण हुंकार करे,
            अंगद सुग्रीव सह , संत  हरहराता  है.
पवन की झोंक लगी  , वारि पे जो थाप लगी ,
            सागर खूब डोलता , अरि  कंपकंपाता है.

राह रोके खड़ी होके, सुरसा दहाड़ मारे ,
             कहाँ जाते नभचारी ,तुम मेरे ग्रास हो.
हाथ जोड़े बोले कपि,लंका जाना महतारी,
            आते ही ग्रस लीजिए, पूर्व प्रभु काज हो.
नागवंशी नहीं माने , वदन विकराल  करे ,
          हनुमान  नहीं माने,वे भी ले विस्तार को.
शीघ्र लघु रूप लेके , कपि मुख घूम आये ,
         सुरसा प्रसन्न बोली,वत्स जाओ काज को.

                     

Monday 14 November 2011

बच्चा काहे दौड़ता है ?


अब्बा दौड़े अम्मी दौड़े 
बच्चा काहे दौड़ता है ?

माना मैंने अब्बा पर ,
घर का सारा बोझ है.
रुक जाएगा तो मानो,
अब्बा घर पर बोझ है.

माना मैंने अम्मी को ,
घर पर पूरी खपती है,
घर पर पाँच जने बैठे,
सब को लेकर पचती है.

घर में बच्चा खेलना था,
वह बूढ़े सा लगता है,
बेमौसम पौधे को ,
पतझड़ काहे रोंदता है ?

अब्बा दौड़े अम्मी दौड़े
बच्चा काहे दौड़ता है ?


अब्बा की बेचेनी देख ,
हाथ बढ़ाने बढ़ता बच्चा ,
अम्मा की टूटन को देख ,
समझा बनता घर में बच्चा.

बेरा बनता ,कूली बनता ,
हॉकर बनता प्यारा बच्चा ,
मोची बनता, माली बनाता , 
नोकर बनता कच्चा बच्चा .


घर में बच्चा झूलना था ,
वह डोलता सा लगता है,
अभी पौधा निकला ही है,
पाला काहे मारता है ?





















Friday 11 November 2011

चतुस्पदियाँ


प्यार की लो जली थी ,तभी   सृष्टि  मुस्कराई .
जो हंसना सीख गया,उसने ही नव राह बनाई . 


लोक-लाज सब छोड़ कर ,चले कामिनी  संग.
अग्निवेश को क्या हो गया,तप कर डाला भंग.
तप कर डाला भंग, लो लगा बैठा दुनिया से,
रस भरी होगी बतियाँ, वार करेंगे अँखियाँ से,
जींस टी.सर्ट पहनेंगे ,जल्दी से भगवा छोड़ कर.
स्वयंवर में पहुंचेंगे ,लोक-लाज सब छोड़ कर ,


कंप्यूटर में उलझ गए, लल्ला -लल्ली - ताऊ.
दिन भर चिंता में निकले,क्या लिखें भड़काऊ ?
क्या लिखें भड़काऊ ?प्रतिक्रिया मिले निरंतर,
अपना भी हो नाम ,चले कुछ  जंतर - मंतर.
उलटा-सुलटा लिख ,ऑफिस में पहुँच गए .
वहां लगी फिर लात ,कंप्यूटर में उलझ गए,


बिजली की कोंध से , वे आये और चले  गये.
हम हैं कि उनके ही , ख्यालों में  उलझ  गये.
वे लौट कर आये भी , सामने ही खड़े हो  गये.
आँखे उठती ही नहीं,कमबख्त होंठ सिल गये.


लाख कह लें हसीन हैं ,प्यार की राहें .
कह लें  खुदा की खुदाई ,प्यार की राहें .
गले फँसी फाँस सी,कलेजे लगी शूल सी  .
नागिन और कटार सी है, प्यार की राहें .


उनका  मुस्कराना था , बौराना हमारा  था.
उनका हाय करना था , कटना  हमारा  था. 
वे लहरा के  घूम  जाएँ , इतराके रुक  जाएँ .
आह!मीठे बेन बोल जाएँ ,मरना हमारा था.

भूख की तड़फ देखी,शीत की गलन  देखी.
तंग कपडे में लाज , ग्रीष्म में जलन देखी.
ताउम्र  फुटपाथ  पर , सड़कों-चौराहों  पर.  
ज़िन्दगी-पतंग ताने,साँसों की लड़ंत देखी.  


द्वार खोल-खोल कर, साँसे थाम-थाम कर ,
         बाट जोह- जोह कर ,मन  को  मसोसती .
राम -चित्र रच  कर ,पुष्प-पत्ती जड़ कर  ,
             खूब सोच-सोच कर,राम को पुकारती .
सीता दिन-दिन भर ,भूखी-प्यासी रह कर ,
             रोती राम- राम कर ,अंगुली मरोड़ती.
रावण  की बगिया में,अबला अकेली हूँ जी  ,
         कह-कह राम जी को ,सर को वो फोड़ती.


राजीव से दूर हुई ,रावण की वाटिका में ,
                सीता सुध खोये बोले , मैं तो डूबी राम जी.
चिड़िया को चुग्गा देती ,पौधों को पानी देती ,
               भरमाई सीता कहती , यहाँ देखो राम जी.
भोजन की थाल देख , पानी की सुराही देख,
                घूंघट को खींच कहे, खाना खाओ राम जी.
खुद की ही छाँव देख ,रोवे हँसे बतियावे, 
                 कभी भाग-भाग कहे, घर चलो राम जी.



Saturday 5 November 2011


एक अरसे से वह सूरज को टोंक रहा .
पता  चला कि उसे दिखाई नहीं देता 
                    
वह दीपक और बत्ती लेकर आया 
माचिस घर पर ही रख कर आया,

रोने को दिल करता है, पर वह रो नहीं पाता .
सच कहूं तो उसे यह भी कहीं सीखना होगा.

मुझे लगता था कि ,हवा थम गयी है.
देखा तुम्हें तो लगा,सांस चल रही है.


मैं तुम्हारे ही ख्यालों में डूबा रहता हूँ .
ज़माना कहता है कि नशे में रहता हूँ .

जागने की हिदायत देते  जनाब सो गये .
पहरुए  ही पहरा छोड़  पक्के चोर हो गये.
 .

संवेदना तो मर गयी है

एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह . तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह . आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा . तेरा बदलना चुभ र...