Sunday, 29 December 2013

संबंध और सरोकार

जो सोये हैं, उनके पास नींद है ,
वे जिंदगी में अकेले हैं ,
या, उन को किसी से कोई ,
सरोकार नहीं
जैसे बर्फ का अकेले सोना
परंतु पानी का निरंतर जागना ।

संबंध और सरोकार
कभी चैन से
रहने ही नहीं देते ,
ये दोनों नित्य ही,
दिमाग में घंटियाँ बजाते रहते हैं
जैसे रेल पटरियाँ और स्टेशन। 

दिमाग में बजती घंटियाँ,
किसी खतरे को,
या,किसी अनहोनी को बताती है ,
ऐसी स्थिति में,
बजती हुई घण्टियों के आगे,
नींद नहीं टिका करती
जैसे दौड़ती व्याकुल नदी ।

जवान लड़की ,
जिसे अभी खिलखिलाना है,
किसी गुलाब की मानिंद,
वह अपने ही शोहर की ,
बदमिजाजियों की वजह से रोती है
जैसे झर रहा हो नर्म झरना। 

पिता का संबंध
अपनी जवान बेटी से है ,
और बेटी की जिंदगी से,
उसे सीधा सरोकार है,
अब भला संबंध और सरोकार के रहते ,
नींद आए तो आए कैसे?
जैसे बहती हवा में दीपक का लड़खड़ाना ।  


-त्रिलोकी मोहन पुरोहित राजसमंद। 

Friday, 20 December 2013

प्रतिक्रिया

धरती के जिस टुकड़े पर
नहीं होता है
हमारी देवियों और भद्रपुरुषों का सम्मान,
तब ऐसी स्थिति में वहाँ
कुछ भी उचित नहीं है हमारे देश के लिए।

वह धरती का टुकड़ा
निरा अंध और सवेदनहीन जैसे नगरसेठ
जिसे मतलब है अपने से
अपने ही हित से ।
ऐसे में उस नगरसेठ से
मान-सम्मान की करना आशा
व्यर्थ हुआ करती है ।
उस से अपने स्वत्व की याचना करना
अपनी संस्कृति के खिलाफ जाती है ,
तब अपनी संस्कृति
चिल्ला-चिल्ला कर कहती है-
पुत्रों ! संगठित प्रतिक्रिया ही है इस का समाधान ।

प्रतिक्रिया से समझौता करना
उचित नहीं हुआ करता है
की गयी प्रतिक्रिया को अनदेखा करना
उस से भी अधिक घातक हुआ करता है,
जैसे रूज़ग्रस्त तन
अपनी पीड़ा के विरोध में
कराह कर प्रतिक्रिया दर्ज करता है ,
कराह में उत्पन्न आर्तनाद स्वरूप प्रतिक्रिया को
अनदेखा करना मृत्यु को
मुक्त निमंत्रण देना होता है ।

प्रतिक्रिया सिहासन से वीथी-वीथी तक होगी
तभी नगरसेठ सा
वह भ्रमित अहंकारी अमरीका समझेगा
किसी देश की संस्कृति का शुचि विधान ।
नहीं हुई ठोस प्रतिक्रिया तब
फिर-फिर कर होगी पुनरावृत्ति ,
अपमानों की काली शृंखला की ।

क्या तुम मरे हुए से हो ?
यदि नहीं तो उचित समय पर
उचित प्रतिक्रिया दर्ज करना भी तो है राष्ट्रीयता ।

स्वस्थ देश के स्वस्थ विकास के लिए
प्रतिक्रिया है अत्यावश्यक सी
यह प्रतिक्रिया ही हमें लौटाती है –
हमारा स्वत्व और सम्मान ।
कविता तुम चुप मत होना ,
तुम्हें तो हर कोई सुनता है ,
वह अपमानित जन हो
या नगरसेठ या अमरीका । 

संवेदना तो मर गयी है

एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह . तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह . आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा . तेरा बदलना चुभ र...