बैठ कर समाधि पर
रोने से अच्छा था,
जब थे तब ही
मिल लेते गले,
अपनेपन के
पुष्प लिए,
तब तुम्हारी आँखों में
पछतावे के स्थान पर
स्नेह की
बरसात होती।
रोने से अच्छा था,
जब थे तब ही
मिल लेते गले,
अपनेपन के
पुष्प लिए,
तब तुम्हारी आँखों में
पछतावे के स्थान पर
स्नेह की
बरसात होती।
- त्रिलोकी
मोहन पुरोहित, राजसमन्द।
No comments:
Post a Comment