Sunday, 2 April 2017

स्नेह की बरसात

बैठ कर समाधि पर
रोने से अच्छा था,
जब थे तब ही 
मिल लेते गले, 
अपनेपन के
पुष्प लिए,
तब तुम्हारी आँखों में 
पछतावे के स्थान पर 
स्नेह की 
बरसात होती।

- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द।

No comments:

Post a Comment

संवेदना तो मर गयी है

एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह . तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह . आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा . तेरा बदलना चुभ र...