Sunday 2 April 2017

संवेदना तो मर गयी है

एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह .
तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह .
आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा .
तेरा बदलना चुभ रहा , महीन रेत की तरह .
गर्म नारों से बदलना , चाहते थे हम सभी को ,
अब हवा में उड़ रहे हो , शुष्क पत्ते की तरह .
मेरी कमीजों पर कभी , तुम गुलाब से थे सजे .
अब हो गए भाव वाले , तुच्छ कागज की तरह .
दुःख नहीं है इस बात का , पास मेरे आते नहीं
खून तेरा क्यों हो गया है , खार पानी की तरह .
लोग अब भी आश्वस्त हैं , राहतें ले आयेगा ही.
वे आसमान में ताकते हैं , भक्त लोगों की तरह .
अब मुझे मालूम है कि , दिल तेरा सुनता कहाँ .
संवेदना तो मर गयी है , व्यर्थ उपमा की तरह.

- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द.

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