श्रीजी तेरे कर सबल , मैं जोऊँ तव बाट।
विपत सब ही दूर करो , सुन लो श्री सम्राट।।1॥
दीन हुआ मैं डोलता , श्रीजी दीनदयाल।
मेरी डोरी कर तेरे , मुझे उबारो लाल।।2॥
मेरी डोरी कर तेरे , मुझे उबारो लाल।।2॥
सरल नेह के सूत्र में, अरस-परस में नाथ।
मुझ अकिंचन तार लो, ये आपस की बात।।3॥
मुझ अकिंचन तार लो, ये आपस की बात।।3॥
मैं सब को ही कह रहा, दीनदयाल श्री नाथ।
श्रीजी मुझ को तार के, विरुद रखो प्रभु हाथ ।।4॥
सुता सौंप दी आपको, पालन करिये नाथ।
कंस असुर मत छोड़िये, लाज आप के हाथ ।।5॥
नहीं शिकायत कर रहा, करुण अर्ज है नाथ।
ह्रदय चीर दिखला दिया, तव भरोसा नाथ ।। 6॥
दृढ आशा ले चल रहा , ले श्रीजी का साथ।
कंस दलन कर दीजिए, आप कृष्ण श्री नाथ ।।7॥
छम-छम करते आइए, घर के खुले कपाट।
श्रीजी खूब अरोगिए, माखन-मिश्री भात।।8॥
झक-झक करता रंगमहल,सजे हुए हैं द्वार।
प्रभु जी साँसों के लगे, सुन्दर बंदनवार।।9॥
छप्पन भोग धरे कई, करे भांत के काज।
कोर कलेजा मैं धरूँ, धरूँ नेह की धार ॥ 10॥
इसी नेह के बल कहूँ,प्रभु जी रखना लाज।
सदा जीत अपनी रहे, मायावी संसार॥ 11॥
मेरी रति तुझमें रहे, व्यर्थ अन्य सब भार।
सारी विपदा हरण कर, करिए प्रभु उपकार।। 12॥
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