दुख है कितना अपना
कितना पराया
जब अपने ही हुए पराये
तुम जानो या मैं जानूँ
क्योंकि दुख ये
तुमसे चिपटा या मुझसे चिपटा ।।
कितना पराया
जब अपने ही हुए पराये
तुम जानो या मैं जानूँ
क्योंकि दुख ये
तुमसे चिपटा या मुझसे चिपटा ।।
दुख है कितना तीखा
कितना घातक
जब सहलाते हाथ बींध गए
तुम जानो या मैं जानूँ
क्योंकि दुख ने
तुमको बींधा या मुझको बींधा ॥
कितना घातक
जब सहलाते हाथ बींध गए
तुम जानो या मैं जानूँ
क्योंकि दुख ने
तुमको बींधा या मुझको बींधा ॥
दुख है कितना उजला
कितना मैला
जब विश्वासों से धोखा पाए
तुम जानो या मैं जानूँ
क्योंकि दुख ये
तुम पर छाया या मुझ पर छाया ।।
कितना मैला
जब विश्वासों से धोखा पाए
तुम जानो या मैं जानूँ
क्योंकि दुख ये
तुम पर छाया या मुझ पर छाया ।।
दुख है कितना भारी
कितना भरकम
तुम जानो या मैं जानूँ
जब भरी दुपहरी रात हुई
क्योंकि दुख ये
तुम पर बरसा या मुझ पर बरसा ।।
कितना भरकम
तुम जानो या मैं जानूँ
जब भरी दुपहरी रात हुई
क्योंकि दुख ये
तुम पर बरसा या मुझ पर बरसा ।।
दुख होगा कब मोम सरीखा
या होगा कब पानी सा
आज जरूरत एका की है
तुम कहते हो या मैं कहता हूँ
क्योंकि दुख को
ना तुमने चाहा ना मैंने चाहा ।।
या होगा कब पानी सा
आज जरूरत एका की है
तुम कहते हो या मैं कहता हूँ
क्योंकि दुख को
ना तुमने चाहा ना मैंने चाहा ।।
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमंद ।
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