Wednesday, 26 February 2014

अच्छे लगे

उलझे हुए रिश्ते भी अच्छे लगे जो तूने दिये।
रिसते हुए नासूर भी अच्छे लगे जो तूने दिये।


मलबे के दिये ढेर पर पसरे हुए रहते हैं हम ।
उझड़े वे आशिया भी अच्छे लगे जो तूने दिये।


आँख का काजल चेहरे पर फैलाये हुए बैठे ।
सूखे हुए आँसू भी अच्छे लगे जो तूने दिये।


भूख-गरीबी और फाकाकशी के हमदम बने हैं।
खाये हुए धोखे भी अच्छे लगे जो तूने दिये।


मांग कर ले ही गए थे हमीं से तेल और बाती।
बदले में मिले ठेंगे अच्छे लगे जो तूने दिये।


लोग हँसते हैं आज हमीं पे खूब बनाया हम को।
हिस्से आए हैं अंधेरे अच्छे लगे जो तूने दिये।


-त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमंद ।

नव गीत - उम्मीद करना व्यर्थ है

पत्थरों से
गीत की
उम्मीद करना
व्यर्थ है।

कान जिसके
वज्र से
उसको सुनाना
व्यर्थ है।

हाथ जिसके
बंध गये
उसको बुलाना
व्यर्थ है।

आँसू जिसके
जम गए
उसको हँसाना
व्यर्थ है ।

भाव जिसके
बढ़ गए
उसको मनाना
व्यर्थ है ।

-
त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमंद।

संवेदना तो मर गयी है

एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह . तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह . आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा . तेरा बदलना चुभ र...