Wednesday 26 February 2014

नव गीत - उम्मीद करना व्यर्थ है

पत्थरों से
गीत की
उम्मीद करना
व्यर्थ है।

कान जिसके
वज्र से
उसको सुनाना
व्यर्थ है।

हाथ जिसके
बंध गये
उसको बुलाना
व्यर्थ है।

आँसू जिसके
जम गए
उसको हँसाना
व्यर्थ है ।

भाव जिसके
बढ़ गए
उसको मनाना
व्यर्थ है ।

-
त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमंद।

No comments:

Post a Comment

संवेदना तो मर गयी है

एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह . तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह . आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा . तेरा बदलना चुभ र...