पत्थरों से
गीत की
उम्मीद करना
व्यर्थ है।
कान जिसके
वज्र से
उसको सुनाना
व्यर्थ है।
हाथ जिसके
बंध गये
उसको बुलाना
व्यर्थ है।
आँसू जिसके
जम गए
उसको हँसाना
व्यर्थ है ।
भाव जिसके
बढ़ गए
उसको मनाना
व्यर्थ है ।
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमंद।
गीत की
उम्मीद करना
व्यर्थ है।
कान जिसके
वज्र से
उसको सुनाना
व्यर्थ है।
हाथ जिसके
बंध गये
उसको बुलाना
व्यर्थ है।
आँसू जिसके
जम गए
उसको हँसाना
व्यर्थ है ।
भाव जिसके
बढ़ गए
उसको मनाना
व्यर्थ है ।
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमंद।
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