हो रहे हैं आयोजन
जिसमें जुटाए जा रहे हैं लोग
जहाँ लोग सुनना चाहते हैं
कुछ राहत भरी घोषणाएँ
जिससे मिले एक क्षण
मुस्कराने के लिए
परंतु उछाली जाती है स्याही
जैसे मंचित नाटक की
कथावस्तु में
प्रसंग बदलने के संकेत में
कर दी गई हो आकाशवाणी।
जिसमें जुटाए जा रहे हैं लोग
जहाँ लोग सुनना चाहते हैं
कुछ राहत भरी घोषणाएँ
जिससे मिले एक क्षण
मुस्कराने के लिए
परंतु उछाली जाती है स्याही
जैसे मंचित नाटक की
कथावस्तु में
प्रसंग बदलने के संकेत में
कर दी गई हो आकाशवाणी।
आयोजन में बदल जाते हैं दृश्य
मंच पर मच जाती है भगदड़
सुरक्षा में लगे लोग
तुरंत तोलते हैं भुजाओं का बल,
गर्दने दबोचने में
असंतुष्ट जन को घिसटने में
दिखाते हैं कौशल ,
इधर असंतुष्ट जन हर हाल में
प्रकट करते हैं असंतोष
उधर मुख्य वक्ता चीखता है -
मेरी आवाज दबाई जा नहीं सकती।
मंच पर मच जाती है भगदड़
सुरक्षा में लगे लोग
तुरंत तोलते हैं भुजाओं का बल,
गर्दने दबोचने में
असंतुष्ट जन को घिसटने में
दिखाते हैं कौशल ,
इधर असंतुष्ट जन हर हाल में
प्रकट करते हैं असंतोष
उधर मुख्य वक्ता चीखता है -
मेरी आवाज दबाई जा नहीं सकती।
जमा हुए लोग
नहीं समझ पाते हैं
आखिर माजरा है क्या?
वे व्याकुल हैं बहुत कुछ जानने को
परिस्थितियाँ बदल गई कुछ यों
मानो छा गया कोहरा
धवल दिवस के वक्ष पर
जिससे दृष्टि हो गई विकल
वर्तमान के दृश्य देखने को।
नहीं समझ पाते हैं
आखिर माजरा है क्या?
वे व्याकुल हैं बहुत कुछ जानने को
परिस्थितियाँ बदल गई कुछ यों
मानो छा गया कोहरा
धवल दिवस के वक्ष पर
जिससे दृष्टि हो गई विकल
वर्तमान के दृश्य देखने को।
स्याही के उछलने पर
वह सब हो गया है गौण
जो आयोजन में आगमन का
मुख्य रहा था प्रयोजन
अब स्याही ही हो गई है मुख्य
जिसके आधार पर होगी बहस
खड़े होंगे नये मुद्दे
बनेगी नई रणनीतियां
रचे जाएँगे समर
योद्धा बनेंगे स्याह चेहरे
जहाँ पर कटेगा आदमी।
वह सब हो गया है गौण
जो आयोजन में आगमन का
मुख्य रहा था प्रयोजन
अब स्याही ही हो गई है मुख्य
जिसके आधार पर होगी बहस
खड़े होंगे नये मुद्दे
बनेगी नई रणनीतियां
रचे जाएँगे समर
योद्धा बनेंगे स्याह चेहरे
जहाँ पर कटेगा आदमी।
- त्रिलोकी
मोहन पुरोहित, राजसमन्द।
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