Saturday 14 September 2013

कबीर की तरह

चीख और चिल्लाहट में
राग बहुत बेसुरा है
फिर कहोगे -
मुझे किसी ने सुना नहीं ॰
लोग तुले हैं
अपनी जेबों को टटोलने में
और
घर के राशन-पानी की
सूची को पूरी करने में
वे बहुत व्यस्त हैं
संध्या के सूरज की तरह
अपनी अस्मिता के लिए ॰

तुम को अपनी
कविता की पड़ी है
जिस में किसी
अप्रतिम सौंदर्य की
देह यष्टि का
उस के रसीले होठों का
कटाक्ष मारती आँखों का
उभरते हुए अंगों का
जिक्र भर है
तुम्हारी आँखों का चश्मा
बहुत रंगीन लगता है ॰

तुम्हारा पूरा ध्यान
अपने शब्दों की
जादूगरी पर है
जिस के लिए
तुम ने रची है
यह मायावी रचना
"वह" किसी इन्द्रजाल से
मुक्त होने के लिए
छटपटा रहा है ,
कितना अच्छा होता
तेरी रचना का स्वर भी
इंद्रजाल को तोड़ने में
सार्थक होता
तब
संगत होती
स्वर होता
और
इंद्रजाल के विरुद्ध
दिल को छूने वाला
कबीर की तरह
संगत लिए गान होता॰

- त्रिलोकी मोहन पुरोहित , राजसमंद ( राज )

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