Tuesday, 30 July 2013

जिज्ञासा

कहने को आँखे खुली है ,
पर ,
तुम ने देखा नहीं ,
नहीं करते प्रतिक्रिया ,
इस अजीबोगरीब ,
आचरण से ,
मितली आ रही है .

एक बात पूछूं ,
नाराज मत हॉना ,
बस ,
मेरी जिज्ञासा है ,
शमन करें ,
बहुत भला होगा ,
ऐसे हालातों में ,
ज़िंदा भी हैं ,
या ,
बिल्कुल मरे हुए .


-त्रिलोकी मोहन पुरोहित , राजसमन्द (राज.)

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