Tuesday, 25 March 2014

तब शिकायत मत करना।

अक्सर ही अभाव से 
कभी व्यक्ति 
कभी पूरा गाँव 
कभी पूरा का पूरा शहर 
घायल हो जाता है 
हर एक स्थिति में
टप-टप करते आँसू व्यर्थ नहीं होते
एक दिन जागेगी गीली आंखे  
उठेगा ज्वार आंसुओं का 
कारण अभाव के बह जाएँगे 
तब शिकायत मत करना।


जब भी तराजू सा 
डोलता है 
कभी व्यक्ति 
कभी पूरा गाँव 
कभी पूरा का पूरा शहर
इस दोलन की स्थिति में 
टप-टप करते श्रमकण व्यर्थ नहीं होते 
एक दिन संत्रस्त चरण जम जाएंगे
वे करेंगे भीषण आघात 
कारण विचलन के कुचल जाएँगे 
तब शिकायत मत करना।


धान की पकी फसल सा 
बिखर जाता है 
कभी व्यक्ति 
कभी पूरा गाँव 
कभी पूरा का पूरा शहर
इस बिखराव की स्थिति में 
टप-टप करती रक्त बूंदे व्यर्थ नहीं होती 
एक दिन उठेगी नई फसल
करेगी भीषण आक्रोश 
कारण बिखराव के जल जाएँगे 
तब शिकायत मत करना।


एकसूत्र बांधती है कविता 
बंध जाता है 
कभी व्यक्ति 
कभी पूरा गाँव 
कभी पूरा का पूरा शहर
इस संगठन की स्थिति में 
टप-टप उगते शब्द-अर्थ व्यर्थ नहीं होते 
एक दिन संवेदनहीनता के विरुद्ध 
भीषण शंख फूँकती 
क्रूर काली सी कलम बने 
तब शिकायत मत करना।


-त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमंद (राज.)


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