Sunday, 2 April 2017

दाएं से बाएं

बल खा कर वे निकल गए हैं
दाएं से बाएं।
मानो निकला अभी अजूबा
दाएं से बाएं।।
कुछ नादान चिल्लाते आए
दाएं से बाएं।
एक सुनहरा अवसर खोया
दाएं से बाएं।।
हो हल्ले में भीड़ बढ़ गई
दाएं से बाएं।
अंधों के हाथ लगी बटेरें
दाएं से बाएं।।
सब पूछ रहे मकसद अपना
दाएं से बाएं।।
गगन ताकते गिरे कूप में
दाएं से बाएं।।
भीगी पानी पीकर ईंटें
दाएं से बाएं।
अब दीवार में लगती ईंटें
दाएं से बाएं।।
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द।

No comments:

Post a Comment

संवेदना तो मर गयी है

एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह . तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह . आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा . तेरा बदलना चुभ र...