मधुरा गौरी खाली घट ले, जल की करे तलाश .
रंग कुसुम्भी रखने वाला , सूख गया रे पलाश .
सूख गए हैं ताल-तलैया ,
फटी बिवाई सी धरती .
किसना हाथ धरे बैठा है ,
क्यों नहीं मेह बरसती .
सूखे - सूखे दिन सब बीते ,वर्षा भी करे निराश .
मधुरा गौरी खाली घट ले, जल की करे तलाश .
तपती धरती बिजली गुल ,
अब पवन लगे अंगार सा .
सो योजन सा दिन लगता,
अब मोल नहीं श्रृंगार का.
नृप इंद्र करे बहुत मनमानी , क्या जाने वह प्यास .
मधुरा गौरी खाली घट ले , जल की करे तलास .
नित्य नया उद्घोषक बोले ,
गरज के वर्षा होगी आज.
कहीं पर छींटे तेज गिरेंगे,
कहीं गिरेगी भारी गाज .
पर नहीं देखता चौकी पर ,खाली धरा गिलास.
मधुरा गौरी खाली घट ले, जल की करे तलाश .
शुष्क शाख पर बैठे-बैठे,
अब सब गें-गें करे मयूर ,
शायद धैर्य बंधाते कहते,
अब आयेंगे जलद जरूर .
रंग कुसुम्भी भर जाएगा , सज जाएगा पलाश .
मधुरा गौरी खाली घट ले, जल की करे तलाश .