Sunday, 10 June 2012

तुम अम्मा सी लगती हो .

पूर्ण  वेग से बह कर नदिया,
गीत सृजन का गाती हो,
सुनो नदी मैं सच कहता हूँ -
तुम अम्मा सी लगती हो .


शस्य-श्यामला धरती सजती,
तेरे क्षीण किनारों पर ,
बस्ती पूरी बस जाती है ,
तेरे सरस किनारों पर .
रजत किनारी के अंचल में,
सुनो नदी मैं सच कहता हूँ -
तुम अम्मा सी लगती हो .


तेरे आकर्षण में बंध सब  ,
धारा में अटखेली करते  ,
पतवार फैलाई नौका लेकर,
तरल वक्ष पर क्रीडा करते ,
कोमल स्मित लघु उर्मी में,
सुनो नदी मैं सच कहता हूँ -
तुम अम्मा सी लगती हो .


संध्या-वंदन , ध्यान-धारणा ,
सूर्योदय से सूर्योदय तक चलते हैं ,
योगी-भोगी , सड़े-गले शव ,
सूर्योदय से सूर्योदय तक बहते हैं ,
शान्त प्रमन सी धारा में ,
सुनो नदी मैं सच कहता हूँ -
तुम अम्मा सी लगती हो .


भव्य-भवन की निर्मिति पर ,
पाँव पखारे जाते तुझ पर ,
भौतिकता के अर्चन में जब,
पाँव पसारे जाते तुझ पर ,
क्रुद्ध धार के तीव्र प्रवाह में,
सुनो नदी मैं सच कहता हूँ -
तुम अम्मा सी लगती हो .


कूल-कगारों का लंघन कर,
बस्ती में भर जाती हो ,
अवरोधों को तोड़-फोड़ कर,
धारा में पिस जाती हो ,
धारा के मटमैले रंग में,
सुनो नदी मैं सच कहता हूँ -
तुम अम्मा सी लगती हो .


मैदानों में खूब फैल कर ,
सरल -विरल हो जाती हो ,
मंथर गति में आगत सिक्ता  ,
धीरे से रख जाती हो ,
नये द्वीप के नव -सृजन में ,
सुनो नदी मैं सच कहता हूँ -
तुम अम्मा सी लगती हो .

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