Friday, 22 June 2012

जल की करे तलाश .




मधुरा गौरी खाली घट ले, जल की करे तलाश .
रंग कुसुम्भी रखने वाला , सूख गया रे पलाश .


सूख गए हैं ताल-तलैया , 
फटी बिवाई  सी  धरती .
किसना हाथ धरे बैठा है ,
क्यों  नहीं  मेह बरसती .


सूखे - सूखे दिन सब बीते ,वर्षा भी करे निराश . 
मधुरा गौरी खाली घट ले, जल की करे तलाश .


तपती धरती बिजली गुल ,
अब पवन लगे अंगार सा .
सो योजन सा दिन लगता,
अब मोल नहीं  श्रृंगार का.


नृप इंद्र करे बहुत मनमानी , क्या जाने वह प्यास . 
मधुरा  गौरी  खाली  घट ले , जल  की  करे तलास .


नित्य नया उद्घोषक बोले ,
गरज के वर्षा होगी आज.
कहीं पर छींटे तेज  गिरेंगे,
कहीं  गिरेगी  भारी गाज .


पर नहीं देखता चौकी पर ,खाली धरा गिलास.
मधुरा गौरी खाली घट ले, जल की करे तलाश .


शुष्क शाख पर बैठे-बैठे,
अब सब गें-गें करे मयूर ,
शायद धैर्य बंधाते कहते,
अब आयेंगे जलद जरूर .


रंग कुसुम्भी भर जाएगा , सज जाएगा पलाश .
मधुरा गौरी खाली घट ले, जल  की करे तलाश .  

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