एक प्याला पी गया जो पी गया
बस तेरा मैं नाम ले के जी गया
हर बार मुश्किलें तो आती रही
मुश्किलों को नाम तेरे जी गया
जख्म साकी दे गया तो दे गया
और पीड़ा नाम उस के जी गया
द्वार जो भी खुला वो रोता मिला .
दूसरों को चुप कराते जी गया .
पुष्टजन में कायदे मरियल मिले .
कायदों से रिक्त जग में जी गया .
कतरन लिये पेहरन बुनता रहा .
कतरनों को ओढ़ कर मैं जी गया .
होगी कोई वह इंद्रधनुषी जिंदगी .
जैसे-तैसे ये जिंदगी तो जी गया .
उस को दुआ दूं कि अब दूं बद्दुआ .
देख लो बदहाली में भी जी गया .
मुश्किलें अब उन की ही बढ़ रही .
मैं तो वो नेमत समझ के जी गया .
उन को जरूरी हो गया जानना .
उन से लगी आग कैसे जी गया ?
कर्म सारे करने थे वह कर गये .
कल सवेरा जान कर मैं जी गया .
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित , राजसमन्द.
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