अभावों से , रुदन ही नहीं ,
गीत भी ,निकल आते ,
वे गीत ,बहुत करुण हो कर ,
ह्रदय को बींध जाते ,
मानों कुरंग का ,
वेणुवादन के बहाने ,
संधान होता है .
श्याम वर्णी नव यौवना ,
बैठी हुई है फुटपाथ पर ऊंची जगह ,
जिस के अंक में ,
भार सा सद्यः प्रसूत शिशु ,
ओढ़े हुए है ,
भरी दुपहरी की धूप पीली,
उस के पार्श्व में सहम कर बैठा ताकता है ,
संभावित भविष्य सा ,
पञ्चवर्षी एक बालक ,
नंगी सड़क पर उस यौवना के लटकते
पैरों के पास सिमटती ,
किशोरी आत्मजा सिकुड़ी हुई ,
मां के हाथ फंसा ,इकतारे को ताकती है ,
और ,
गाती हुई मां के स्वरों में टेर देती है ,
यह देख कर -
कुछ हाथ जेबों में सरक कर ,
द्वद्व में उलझे हुए हैं ,
उन्हें भी तो मुक्त करना है .
कुछ देर में ही ,
चलते पथिक ठिठक कर ,
उनके आस-पास खड़े हो जाते हैं ,
भीड़ की भद्दी शक्ल में ,
कुछ लोग सिक्के उछालते हैं ,
कुछ वाह-वाह कर खड़े रहते,
कुछ मां और किशोरी को तोलते हैं,
सौन्दर्य के निकष पर ,
कुछ बौद्धिक पूछते हैं ,
करुण गीतों के उन गायकों को ,
कौन उन का है घराना ,
कौन उन का है गुरु ,
कौन सी है पद्धति ,
पर अभावों में प्रस्फुटित स्वर ,
यह कहे कैसे -
अभाव उनका है घराना ,
अभाव उनका है गुरु ,
अभाव उनकी है पद्धति ,
वे जानते है ,सभ्यों के इस लोक में ,
यह कहना बहुत बुरा है .
इसीलिए कह देते हैं -
जनाब आप की मुहब्बत ,
और ,
ईश्वर की कृपा का ही ,
यह सुफल है .
करुण गीतों को लिए ,
लोग गुनगुनाते चले जाते ,
या बहस करते हैं,
( इन्हें भी अवसर मिला होता ,
ये सितारे जमीं पर नहीं होते )
कुछ तात्कालिक योजना में उलझ जाते ,
कुछ शास्त्र और दर्शन के आधार पर ,
फुटपाथ की गायकी को तय करते ,
कुछ कोसते हैं उन को निठल्ले कह ,
कुछ कहते हैं ,
अरे! इस गायकी की आड़ में बहुत कुछ है ,
पर सभी इस बात से संतुष्ट हैं ,
गला और स्वर बहुत मधुर है ,
और बोल उन के ,
ह्रदय को बेधते हैं ,
मैं हूँ ...............
किसी घायल कुरंग सा ,
रुक सोचता हूँ फुटपाथ पर भी ,
अभावों से निपजती ,
कलाएं कितनी विवश है ,
ना जाने कौन से लोक से ,
इन के तारणहार आयेंगे.
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द.
गीत भी ,निकल आते ,
वे गीत ,बहुत करुण हो कर ,
ह्रदय को बींध जाते ,
मानों कुरंग का ,
वेणुवादन के बहाने ,
संधान होता है .
श्याम वर्णी नव यौवना ,
बैठी हुई है फुटपाथ पर ऊंची जगह ,
जिस के अंक में ,
भार सा सद्यः प्रसूत शिशु ,
ओढ़े हुए है ,
भरी दुपहरी की धूप पीली,
उस के पार्श्व में सहम कर बैठा ताकता है ,
संभावित भविष्य सा ,
पञ्चवर्षी एक बालक ,
नंगी सड़क पर उस यौवना के लटकते
पैरों के पास सिमटती ,
किशोरी आत्मजा सिकुड़ी हुई ,
मां के हाथ फंसा ,इकतारे को ताकती है ,
और ,
गाती हुई मां के स्वरों में टेर देती है ,
यह देख कर -
कुछ हाथ जेबों में सरक कर ,
द्वद्व में उलझे हुए हैं ,
उन्हें भी तो मुक्त करना है .
कुछ देर में ही ,
चलते पथिक ठिठक कर ,
उनके आस-पास खड़े हो जाते हैं ,
भीड़ की भद्दी शक्ल में ,
कुछ लोग सिक्के उछालते हैं ,
कुछ वाह-वाह कर खड़े रहते,
कुछ मां और किशोरी को तोलते हैं,
सौन्दर्य के निकष पर ,
कुछ बौद्धिक पूछते हैं ,
करुण गीतों के उन गायकों को ,
कौन उन का है घराना ,
कौन उन का है गुरु ,
कौन सी है पद्धति ,
पर अभावों में प्रस्फुटित स्वर ,
यह कहे कैसे -
अभाव उनका है घराना ,
अभाव उनका है गुरु ,
अभाव उनकी है पद्धति ,
वे जानते है ,सभ्यों के इस लोक में ,
यह कहना बहुत बुरा है .
इसीलिए कह देते हैं -
जनाब आप की मुहब्बत ,
और ,
ईश्वर की कृपा का ही ,
यह सुफल है .
करुण गीतों को लिए ,
लोग गुनगुनाते चले जाते ,
या बहस करते हैं,
( इन्हें भी अवसर मिला होता ,
ये सितारे जमीं पर नहीं होते )
कुछ तात्कालिक योजना में उलझ जाते ,
कुछ शास्त्र और दर्शन के आधार पर ,
फुटपाथ की गायकी को तय करते ,
कुछ कोसते हैं उन को निठल्ले कह ,
कुछ कहते हैं ,
अरे! इस गायकी की आड़ में बहुत कुछ है ,
पर सभी इस बात से संतुष्ट हैं ,
गला और स्वर बहुत मधुर है ,
और बोल उन के ,
ह्रदय को बेधते हैं ,
मैं हूँ ...............
किसी घायल कुरंग सा ,
रुक सोचता हूँ फुटपाथ पर भी ,
अभावों से निपजती ,
कलाएं कितनी विवश है ,
ना जाने कौन से लोक से ,
इन के तारणहार आयेंगे.
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द.
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