अरसे तक बंद रहा ,
अघोषित कारा में,
और - सीलन भरी दीवारें
घुटन और संत्रास से
मुक्ति के लिए,
उठते थे हाथ ,
होठों से बुदबुदाहट में,
निकलती थी प्रार्थनाएं -
हे; इन्द्र, वृधस्र्वा देवता;
मेरा कल्याण करो ,
पूषा ,विश्ववेदा देवता;
मेरा कल्याण करो ,
तार्क्षयो , अरिष्टनेमि देवता;
मेरा कल्याण करो ,
बृहस्पति देवता;
मेरा कल्याण करो ,
मुझे कृपा पूर्वक ,
कल्याण प्रदान करो
एक दिन प्रार्थना सुन ली गयी ,
और -
टूट गयी - कारा ,
मैं चुंधियाती आँखों से देखता रहा ,
आलोक का विस्तृत पुंज,
भागते हुए लोग ,
मानो बह रही हो नदी ,
ऊभ - चूभ लहरों सी जनावलियाँ,
कोई किसी से मिलता नहीं ,
नहीं करता किसी से कोई बात ,
न ही किसी से कोई सरोकार ,
बस- हर कोई ,
एक दूसरे को धकेलते हुए,
निकल जाना चाहता है आगे,
अघोषित प्रतिस्पर्धा ,-
सब कुछ बटोर लेने की चाहत.
चाहता था कि-
रोकूँ किसी एक को
पूछ लूं - क्यों भाग रहे हो ?
कई बार की कोशिश,
परन्तु हो न सका सफल ,
बरबस धकेल कर,
निकल जाती थी लहरें -आगे ,
जैसे फेलने को आतुर कसेला धुंआ,
अनायास मैं भी लगाने लगा-
"दौड़" ,
लेकिन हो गए साथ फिर से -
अकेलापन , अन्धेरा ,
और- सीलन भरी दीवारें . .
अघोषित कारा में,
सालता था वहां का
अकेलापन , अंधेराऔर - सीलन भरी दीवारें
घुटन और संत्रास से
मुक्ति के लिए,
उठते थे हाथ ,
होठों से बुदबुदाहट में,
निकलती थी प्रार्थनाएं -
हे; इन्द्र, वृधस्र्वा देवता;
मेरा कल्याण करो ,
पूषा ,विश्ववेदा देवता;
मेरा कल्याण करो ,
तार्क्षयो , अरिष्टनेमि देवता;
मेरा कल्याण करो ,
बृहस्पति देवता;
मेरा कल्याण करो ,
मुझे कृपा पूर्वक ,
कल्याण प्रदान करो
एक दिन प्रार्थना सुन ली गयी ,
और -
टूट गयी - कारा ,
मैं चुंधियाती आँखों से देखता रहा ,
आलोक का विस्तृत पुंज,
भागते हुए लोग ,
मानो बह रही हो नदी ,
ऊभ - चूभ लहरों सी जनावलियाँ,
कोई किसी से मिलता नहीं ,
नहीं करता किसी से कोई बात ,
न ही किसी से कोई सरोकार ,
बस- हर कोई ,
एक दूसरे को धकेलते हुए,
निकल जाना चाहता है आगे,
अघोषित प्रतिस्पर्धा ,-
सब कुछ बटोर लेने की चाहत.
चाहता था कि-
रोकूँ किसी एक को
पूछ लूं - क्यों भाग रहे हो ?
कई बार की कोशिश,
परन्तु हो न सका सफल ,
बरबस धकेल कर,
निकल जाती थी लहरें -आगे ,
जैसे फेलने को आतुर कसेला धुंआ,
अनायास मैं भी लगाने लगा-
"दौड़" ,
लेकिन हो गए साथ फिर से -
अकेलापन , अन्धेरा ,
और- सीलन भरी दीवारें . .
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