तू-तू मैं - मैं कर रहे , लिए अहं का जोर .
अहं तुरत ही सोंपता, कागा जी का शोर .
बीच नगर में बेठ के, चला प्रेम का दोर.
बीच नगर में बेठ के, चला प्रेम का दोर.
लुटे पिटे घर को चले,नहीं रुदन अरु शोर.
कर-कर आलिंगन कहे,लाल चलो घर ओर .
कर-कर आलिंगन कहे,लाल चलो घर ओर .
चम - चम करती बीजली,करे भयंकर शोर .
शोर नहीं हलचल नहीं , बन बेठे भरतार .
मैंने नौका सोंप दी , मान लियो करतार .
उपवन गयी जु राधिका,लाल दियो झकझोर .
इत - उत देखत ही रही , केवल नन्द किशोर .
वो पिक को यूं डांटती,मत कर अब शठ शोर .
शोर नहीं हलचल नहीं , बन बेठे भरतार .
मैंने नौका सोंप दी , मान लियो करतार .
उपवन गयी जु राधिका,लाल दियो झकझोर .
इत - उत देखत ही रही , केवल नन्द किशोर .
वो पिक को यूं डांटती,मत कर अब शठ शोर .
मन पर मेरा बस नहीं ,नहीं घर पर चितचोर .
जन-धन-बाहु-बुद्धि बली , करते छल-अभिमान .
वे जन पग - पग लाजते , खोते नित सम्मान .
जे नर ना ही जानते , चलन - कलन की बात .
वे तत्त्व पर लिखन चले , कहूं मूरख की जात.
अज्ञानी ज्योतिष बने ,काठ - चर्म के ढोल .
बाहर से फूले - फले , अन्दर पोलं - पोल .
लग्न - चन्द्र होरा - दशा , गोचर का ना ज्ञान .
कह नहीं पाते फलित , वे पत्रा के भगवान .
जन-धन-बाहु-बुद्धि बली , करते छल-अभिमान .
वे जन पग - पग लाजते , खोते नित सम्मान .
जे नर ना ही जानते , चलन - कलन की बात .
वे तत्त्व पर लिखन चले , कहूं मूरख की जात.
अज्ञानी ज्योतिष बने ,काठ - चर्म के ढोल .
बाहर से फूले - फले , अन्दर पोलं - पोल .
लग्न - चन्द्र होरा - दशा , गोचर का ना ज्ञान .
कह नहीं पाते फलित , वे पत्रा के भगवान .
No comments:
Post a Comment