क्षण
एक क्षण ,बहुत है ,
पूर्ण युग का,क्या करेंगें .
रोज चलना नियति बनी है ,
यायावरी सी यह जिन्दगी है .
यह टूटती है ,यह बिखरती है .
खिलौने सी मम जिन्दगी है .
अनुभूति का ,
एक क्षण ,बहुत है ,
पूर्ण युग का,क्या करेंगे.
गढ़ रहा हूँ , मढ़ रहा हूँ ,
मृत्तिका सम जिन्दगी है ,
कुम्हार सा मैं बन गया हूँ ,
घट सी यह मम जिन्दगी है .
सत्य का ,
एक क्षण ,बहुत है ,
पूर्ण युग का,क्या करेंगे.
जोड़ -बाकी नित ही लगाता ,
गणित सी यह जिन्दगी है,
कितनी उधारी शेष मुझ पर ,
बही सी बनी मम जिन्दगी है .
अभिव्यक्ति का ,
एक क्षण ,बहुत है ,
पूर्ण युग का,क्या करेंगे.
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