Tuesday 10 April 2012

क्षण 


सृजन का ,
एक क्षण  ,बहुत है ,
पूर्ण युग का,क्या करेंगें .

रोज चलना नियति बनी है ,
यायावरी सी यह जिन्दगी है .
यह टूटती है ,यह बिखरती है .
खिलौने सी मम जिन्दगी है .

अनुभूति का ,
एक क्षण  ,बहुत है ,
पूर्ण युग का,क्या करेंगे.

गढ़ रहा हूँ , मढ़ रहा हूँ ,
मृत्तिका सम  जिन्दगी है ,
कुम्हार सा मैं बन गया हूँ ,
घट सी यह मम  जिन्दगी है .

सत्य का ,
एक क्षण  ,बहुत है ,
पूर्ण युग का,क्या करेंगे. 

जोड़ -बाकी नित ही लगाता ,
गणित सी यह जिन्दगी है,
कितनी उधारी शेष मुझ  पर ,
बही सी बनी मम  जिन्दगी है .


अभिव्यक्ति का ,
एक क्षण  ,बहुत है ,
पूर्ण युग का,क्या करेंगे. 

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