श्री राम का समुद्र तट पर सीता का स्मरण कर दुखी होना
और रावण के प्रति प्रतिशोध प्रकट करना-
प्रिय से मिलन हेतु , जैसे -जैसे राह कटे ,
सदाशा में वृद्धि होती , प्रकृति प्रभाव है .
पर मेरे सह कैसे , प्रकृति विरुद्ध होती ,
मुझे मिले हताशा क्या,नेह परिणाम है.
सीता अति संकट में , यह जान मन मेरा ,
झूले सा यह झूलता , चंचल स्वभाव है.
मन को भी साधता हूँ , वारिधि को बांधता हूँ ,
हाय ! सखा दहता हूँ , प्रतिशोध भाव है.
चाहता हूँ सखा मेरे , सीता ले-ले शक्ति रूप
महिषासुर सम ही , रावण को मार दे .
चाहता हूँ भाई मेरे , सीता ले प्रचंड रूप ,
चंड - मुंड सम ही वो , रावण को काट दे .
सीता अति संकट में , यह जान मन मेरा ,
झूले सा यह झूलता , चंचल स्वभाव है.
मन को भी साधता हूँ , वारिधि को बांधता हूँ ,
हाय ! सखा दहता हूँ , प्रतिशोध भाव है.
चाहता हूँ सखा मेरे , सीता ले-ले शक्ति रूप
महिषासुर सम ही , रावण को मार दे .
चाहता हूँ भाई मेरे , सीता ले प्रचंड रूप ,
चंड - मुंड सम ही वो , रावण को काट दे .
चाहता हूँ वीर मेरे , सीता मम शिखी ले के ,
शुम्भ सम रावण के , वक्ष को ही पाट दे .
चाहता हूँ लाल मेरे , सीता सिंह वाहिनी हो ,
निशुम्भ सा निशाचरी, तंत्र को उखाड़ दे .
राम का वदन तप , रवि सम रक्त हुआ ,
मानो क्रोध अनल में,स्वर्ण थाल तपता.
राम ओज रूप देख , हर्षित अनुज हुए ,
मानो रवि चढ़ा देख , पंकज विकसता .
संध्या-वंदन समीप जान , कूल ओर बढे राम ,
मानो गज सर देख , निर्भय हो धंसता.
प्राण साध अर्घ्य दिये , जल में तरंग उठी,
मानो मन्त्र सुनकर , वारिधि दहलता.
राम का वदन तप , रवि सम रक्त हुआ ,
मानो क्रोध अनल में,स्वर्ण थाल तपता.
राम ओज रूप देख , हर्षित अनुज हुए ,
मानो रवि चढ़ा देख , पंकज विकसता .
संध्या-वंदन समीप जान , कूल ओर बढे राम ,
मानो गज सर देख , निर्भय हो धंसता.
प्राण साध अर्घ्य दिये , जल में तरंग उठी,
मानो मन्त्र सुनकर , वारिधि दहलता.
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