प्रिय ! एक बात अब , कहूँ उसे मान जाओ ,
सीता सती स्वरूपा है , अबला न मानिए .
हर लाये आप उसे , बिना ही विचार के ,
परदारा व्याली सम , काल रूप जानिए .
सीता मात्र राघव की , राघव को सौंप कर ,
सादर- विनय सह , क्षमा मांग जाइए .
दमन-दलन त्याग , मकार व राग त्याग ,
संत भाव ला कर के , लोक राज लाइए .
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