Saturday, 28 April 2012



प्रिय ! एक बात अब , कहूँ उसे मान जाओ ,

                        सीता सती स्वरूपा है , अबला न मानिए  .
हर लाये आप उसे , बिना ही विचार के ,
                        परदारा व्याली सम , काल रूप  जानिए .
सीता मात्र राघव की , राघव को सौंप कर ,
                         सादर- विनय सह  , क्षमा मांग जाइए .
दमन-दलन त्याग , मकार व राग त्याग ,
                          संत  भाव ला कर के , लोक राज  लाइए .  

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