राह में सघन वन , कई - कई वृक्ष मिले ,
दिवस में तम का भी,कई बार राज है.
आम्र व अशोक वृक्ष , पीपल व पाकड़ हैं,
बरगद बबूल नीम , फलित अथाह है.
तीव्र नद धार मिले,विस्तृत तडाग मिले,
झरनों की झरन में , अवरुद्ध राह है.
ऊभ -चूभ मार्ग हो या, सरल हो मार्ग चाहे,
बढे-चले जाते सब , राजा राम साथ है.
वारिधि के तट पर , पहुंची शीघ्र वाहिनी ,
मानो चाहता है नद , उदधि मिलन को.
वर वीर फैल गए , यत्र तत्र तट पर ,
मानो चाहते मराल , मुक्ता के चयन को .
श्रम परिहार हेतु , स्नान करते हैं वीर ,
मानो चाहते हैं देव , सागर मंथन को .
चंचल वारिधि देख , राम अति गंभीर हैं ,
मानो चाहते हैं अद्य , सागर लंघन को .
राज हंस देख कर , राम अनुज से कहे ,
युगल को साथ देख , सीता याद आती है .
अग्र गामी हंस होता , अनुगामी हंसिनी है ,
हंसिनी को देख-देख , सीता याद आती है .
वारिधि तरंगों में है , डोलता युगल यह ,
राम का भी त्रास यही,सीता याद आती है.
इस कूल हम बैठे , उस कूल वियोगिनी,
उदधि चुनौती देख ,सीता याद आती है .
आम्र व अशोक वृक्ष , पीपल व पाकड़ हैं,
बरगद बबूल नीम , फलित अथाह है.
तीव्र नद धार मिले,विस्तृत तडाग मिले,
झरनों की झरन में , अवरुद्ध राह है.
ऊभ -चूभ मार्ग हो या, सरल हो मार्ग चाहे,
बढे-चले जाते सब , राजा राम साथ है.
वारिधि के तट पर , पहुंची शीघ्र वाहिनी ,
मानो चाहता है नद , उदधि मिलन को.
वर वीर फैल गए , यत्र तत्र तट पर ,
मानो चाहते मराल , मुक्ता के चयन को .
श्रम परिहार हेतु , स्नान करते हैं वीर ,
मानो चाहते हैं देव , सागर मंथन को .
चंचल वारिधि देख , राम अति गंभीर हैं ,
मानो चाहते हैं अद्य , सागर लंघन को .
राज हंस देख कर , राम अनुज से कहे ,
युगल को साथ देख , सीता याद आती है .
अग्र गामी हंस होता , अनुगामी हंसिनी है ,
हंसिनी को देख-देख , सीता याद आती है .
वारिधि तरंगों में है , डोलता युगल यह ,
राम का भी त्रास यही,सीता याद आती है.
इस कूल हम बैठे , उस कूल वियोगिनी,
उदधि चुनौती देख ,सीता याद आती है .
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