कुछ घटनाओं के दंश
जीवन भर
भुलाए जा नहीं सकते,
कुछ ऐसे होते हैं दाग
अथक कोशिश से
हटाये जा नहीं सकते,
जैसे अलकनंदा-भागीरथी के
प्रकोप में
केदारनाथ-गोरी कुंड का
मरघट में बदल जाना।
जीवन भर
भुलाए जा नहीं सकते,
कुछ ऐसे होते हैं दाग
अथक कोशिश से
हटाये जा नहीं सकते,
जैसे अलकनंदा-भागीरथी के
प्रकोप में
केदारनाथ-गोरी कुंड का
मरघट में बदल जाना।
वे घटनाएँ और वे दाग
कभी छोटे कभी बड़े
कभी गहरे कभी हल्के
हो कर भी
विषम जीवाणु से
चिपट जाते हैं जिंदगी से,
खाँसती बलगम उलीचती
जिंदगी कटती जाती है,
जैसे जंगल में पड़े काष्ठ के
बड़े खंड को दीमक
कुतर कर चट कर जाती ।
कभी छोटे कभी बड़े
कभी गहरे कभी हल्के
हो कर भी
विषम जीवाणु से
चिपट जाते हैं जिंदगी से,
खाँसती बलगम उलीचती
जिंदगी कटती जाती है,
जैसे जंगल में पड़े काष्ठ के
बड़े खंड को दीमक
कुतर कर चट कर जाती ।
दीमक लगी जिंदगी
बिलकुल खोखली
और निस्सार हो कर
देखी गयी है दम तोड़ती हुई
जैसे दम तोड़ जाती है
धूम्रपान के छल्लों की
निर्जीव और आधारहीन रचना
हवा में फैलती हुई।
बिलकुल खोखली
और निस्सार हो कर
देखी गयी है दम तोड़ती हुई
जैसे दम तोड़ जाती है
धूम्रपान के छल्लों की
निर्जीव और आधारहीन रचना
हवा में फैलती हुई।
जीवन भला दंश भोगने के लिए
और दाग का बोझ ढोने के लिए
नहीं समझा जा सकता,
जीवन मंदिर कलश की तरह
उज्ज्वल और गर्वोन्नत हो कर
गगन को ललकारता हुआ
अच्छा लगता,
या मंदिरों की रुनझुन-रुनझुन करती
घण्टियों की तरह
टंकारें करता शुचिता का वहन करता
या स्वस्तिवाचन के स्वर सा
मंगल गुंजार करता ही अच्छा लगता।
और दाग का बोझ ढोने के लिए
नहीं समझा जा सकता,
जीवन मंदिर कलश की तरह
उज्ज्वल और गर्वोन्नत हो कर
गगन को ललकारता हुआ
अच्छा लगता,
या मंदिरों की रुनझुन-रुनझुन करती
घण्टियों की तरह
टंकारें करता शुचिता का वहन करता
या स्वस्तिवाचन के स्वर सा
मंगल गुंजार करता ही अच्छा लगता।
जो भागते हैं जीवन के कटु पक्षों से
और भुलाना चाहते हैं उनको
लेकर मादक संदर्भों के बल पर
वे लोग शतुरमुर्ग से
कम नहीं हुआ करते होंगे,
वे शतुरमुर्ग से जन
आँखें बंद किए हुए रहते हैं
काल चला आता उनके पास
जैसे कसाई चला आता है
किसी अजापुत्र के पास।
और भुलाना चाहते हैं उनको
लेकर मादक संदर्भों के बल पर
वे लोग शतुरमुर्ग से
कम नहीं हुआ करते होंगे,
वे शतुरमुर्ग से जन
आँखें बंद किए हुए रहते हैं
काल चला आता उनके पास
जैसे कसाई चला आता है
किसी अजापुत्र के पास।
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित , राजसमंद (राज.)
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