मंदोदरी कह कर , रावण के वक्ष पर ,
भाल रख कर श्रम ,परिहार चाहती.
हस्त भाल पर धर ,रावण विलग करे,
पर रानी लता सम,अवलम्ब चाहती .
रावण का वक्ष तब,धड़क-धड़क कर,
वह कुछ कह रहा,सुनना वो चाहती.
समझ न सकी जब,वक्ष की धड़क को ,
विलग वो हो कर के,नृप को निहारती.
रावण विहंस कर,कुलीना को कह चला,
अरे प्रिये ! भय तव , नेह परिणाम जो.
कथन मधुर अति , शीतल व तरल है,ललना स्वभाव वश,ललित-ललाम जो .
भय आप त्याग कर,रक्ष इतिहास देखो,
देव नर नाग पर , जय अभिराम जो.
काल सम खड्ग मम ,मृत्यु सम धार सह,
देखी कई वाहिनी को , देखे कई राम जो.देवी ! हम चाहते हैं ,राम का निदान अद्य,
इस हेतु चिन्तना में,हम हैं लगे हुए.
आलोडन-विलोडन , हम नहीं मानते हैं ,
चित्त एक विषय पे , हम हैं धरे हुए .
सीता हर कर लाये , मान का विषय यह ,
कौन कह सकता है , हम हैं डरे हुए .
सभा का समय हुआ , अब हम चलते हैं ,
रण हेतु उत्साह से , हम हैं भरे हुए .
सभा मध्य वर वीर , पहुँच -पहुँच कर ,
रावण को झुक-झुक,सम्मान दर्शाता है .
स्वर्ण-मणि से शोभित , आसन को पा कर के,
निशाचर वर वीर , गर्व भर जाता है .
देख लिया रावण ने , आ गये उचित वीर ,
हस्त ऊर्ध्व में उठा के, संवाद बनाता है .
विक ट समय अब , लंका पर छा गया है ,
समाधान हेतु वह , मंत्रणा कराता है.
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