Wednesday, 2 May 2012

वे बिसरा कर चल दिए,रोज रटूं मैं नाम


वे बिसरा कर चल दिए,रोज  रटूं मैं नाम .
तन्हाई  में  रह गए  , आज  अकेले  राम .

अपने में ही डोल रहा हूँ ,
गांठे सारी खोल  रहा हूँ .
कहाँ समर्पण  में अभाव था,
अपने से ही बोल  रहा हूँ .

सारी चर्या  रह गई  , यही बचा एक  काम .
वे बिसरा कर चल दिए , रोज  रटूं मैं नाम .

मुश्किल से दिन  काट  रहा हूँ ,
मानो गिनती की  रही  श्वांस 
नित  तन्हाई  मुई  मारती ,
ज्यों छाती चढ़ा पीवण  सांप.

रग - रग पीड़ा फैलती , मिला दर्द का गाँव .
वे बिसरा कर चल दिए , रोज  रटूं मैं नाम .

मिले तो कहना आपका ही ,
सदा बना  रहूँगा  मैं ख़ास ,
सुख ने तो छल खूब किया है ,
पर तेरे दुःख का है विश्वास  .

उनके सभी किये उचित ,उनको कई प्रणाम .
वे बिसरा कर चल दिए , रोज  रटूं मैं नाम .







No comments:

Post a Comment

संवेदना तो मर गयी है

एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह . तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह . आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा . तेरा बदलना चुभ र...