वे बिसरा कर चल दिए,रोज रटूं मैं नाम .
तन्हाई में रह गए , आज अकेले राम .
अपने में ही डोल रहा हूँ ,
गांठे सारी खोल रहा हूँ .
कहाँ समर्पण में अभाव था,
अपने से ही बोल रहा हूँ .
सारी चर्या रह गई , यही बचा एक काम .
वे बिसरा कर चल दिए , रोज रटूं मैं नाम .
मुश्किल से दिन काट रहा हूँ ,
मानो गिनती की रही श्वांस
नित तन्हाई मुई मारती ,
ज्यों छाती चढ़ा पीवण सांप.
रग - रग पीड़ा फैलती , मिला दर्द का गाँव .
वे बिसरा कर चल दिए , रोज रटूं मैं नाम .
मिले तो कहना आपका ही ,
सदा बना रहूँगा मैं ख़ास ,
सुख ने तो छल खूब किया है ,
पर तेरे दुःख का है विश्वास .
उनके सभी किये उचित ,उनको कई प्रणाम .
वे बिसरा कर चल दिए , रोज रटूं मैं नाम .
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