भोगवतीपुरी अद्य , रखती है रण-चिह्न ,
दशग्रीव-नाग युद्ध , किसने भुलाया है.
कैलास-शिखर जहां, कुबेर का गढ़ वहां,
युद्ध छेड़ रावण से , लंका को गंवाया है.
वर वीर रावण से ,मय तक काँप गया ,
दे कर के आत्मजा को,जामाता बनाया है.
सहोदरा कुम्भीनसी , पति मधु दानव जो ,
रावण से रण चाह , मर्दन कराया है .
खोया-खोया रावण को , देख निशाचर कहे ,
दश दिशा जयघोष , आप के ही गूंजते.
वासुकी-तक्षक हारे , शंख-जटी नाग हारे ,
रावण का नाम सुन , अचला को चूमते .
वरुण के पुत्र सारे , रावण की असि देख ,
बावरे वो हो कर के , यत्र - तत्र घूमते .
यमराज सैन्य - दल , युद्ध में कुचल कर ,
काल आप रोक कर ,स्वच्छंद हो झूमते .
कई - कई ऋषि हुए , जपी - तपी सिद्ध हुए ,
रावण सा साधक तो , कृपा कर कह दें .
देवाधिदेव शिव के , वर से सायुज्य हो के ,
रावण सा सम कौन , कृपा कर कह दें .
अगणित वीर यहाँ , तिस पर इन्द्रजीत ,
इन्द्रजीत सम अन्य ,कृपा कर कह दें .
इन्द्र मुक्ति हेतु ब्रह्मा , आ कर के कहते हैं ,
रावण सा यश कहाँ , कृपा कर कह दें .
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