एक कपि हनुमान , लंका में निश्शंक हो के,
भ्रमण वो कर-कर , सब देख जाता है .
भ्रष्ट कर के व्यवस्था,उपवन में पहुँच ,
रक्ष वीर मार-मार,सीता देख जाता है .
राम सहिदानी दे के,सीता का सन्देश ले के,
प्राण प्यारी लंका को वो,दहे चला जाता है.
हो कर के स्वच्छंद वो,करता है विध्वंश वो .
स्वर्ण चैत्य प्रासाद को , ढूह कर जाता है .
कपि-ऋक्ष-वनवासी,ले कर के अब राम ,
जलधि के तट तक , सहज में आ गए .
बलशाली कपि वीर , भीमकाय ऋक्ष वीर,
श्रमशील वनवासी , घन सम आ गए.
भ्रमण वो कर-कर , सब देख जाता है .
भ्रष्ट कर के व्यवस्था,उपवन में पहुँच ,
रक्ष वीर मार-मार,सीता देख जाता है .
राम सहिदानी दे के,सीता का सन्देश ले के,
प्राण प्यारी लंका को वो,दहे चला जाता है.
हो कर के स्वच्छंद वो,करता है विध्वंश वो .
स्वर्ण चैत्य प्रासाद को , ढूह कर जाता है .
कपि-ऋक्ष-वनवासी,ले कर के अब राम ,
जलधि के तट तक , सहज में आ गए .
बलशाली कपि वीर , भीमकाय ऋक्ष वीर,
श्रमशील वनवासी , घन सम आ गए.
लक्ष्मण है वह्नि सम, सुग्रीव है क्षपा सम,
अंगद भू-कंप सम , वर वीर आ गए .
जाम्बवंत-हनुमान , नल-नील-सुषेण जो,
राम ज्वालामुखी सह,विस्फोट से आ गए .
कई-कई युक्ति कर ,शीघ्र सेतु बाँध कर ,
वारिधि को पार कर,लंका चढ़ आयेंगे.
कपि मात्र एक आया ,छिन्न-भिन्न कर गया,
अब राम लोक सह , रोक नहीं पायेंगे.
समय है अभी शेष , मन्त्र चाहिए विशेष ,
एक मत होने पर , सही दिशा जायेंगे .
स्वर्ण लंका रावण के , शोणित से सिंची हुई ,
कई-कई युक्ति कर ,शीघ्र सेतु बाँध कर ,
वारिधि को पार कर,लंका चढ़ आयेंगे.
कपि मात्र एक आया ,छिन्न-भिन्न कर गया,
अब राम लोक सह , रोक नहीं पायेंगे.
समय है अभी शेष , मन्त्र चाहिए विशेष ,
एक मत होने पर , सही दिशा जायेंगे .
स्वर्ण लंका रावण के , शोणित से सिंची हुई ,
प्रश्न विकराल खडा , कैसे बचा पायेंगे?
तभी निशाचर वीर , एक साथ बोल पड़े ,
राज राजा दशग्रीव , रणधीर आप हैं.
देव नर नाग कोई , अद्य हम सम नहीं ,
देवराज इन्द्र भी तो , मर्दित है आप से.
अतल व वितल में , निशाचर तंत्र रहा ,
निशाचर हैं अधीन , मात्र अद्य आप के.
राम वाहिनी के सह , आये हैं वारिधि तक ,
देख लेंगे हम मिल , विषय न आप के.
No comments:
Post a Comment