Tuesday 29 May 2012

हमें बांटने वालों को देख .


मरहम को क्या रोता  पगले, अपने गहरे घावों को देख .
मरहम तो मिल जायेगी ही , पहले नश्तर वालों को देख .

भूख लगी तो रिरियाता क्या , पगले काहे को दुहरा होता   .
हाथ  जोड़ने से क्या  मिलता , कोर छीनने वालों को देख.

नंगेपन में तेरा दोष नहीं है , क्यों सहम के गठरी बनता है.
अस्मत की क्या भीख मांगता  ,वस्त्र फाड़ने वालों को देख.

भाग रहा है तू कब से पागल , क्यों न शहादत सीख गया .
कब से ही छप्पर थाम रहा है , घर उजाड़ने वालों को देख .

आँख मूँदने से क्या होता , आँख खोल के देख "त्रिलोकी".
कुछ लोग प्यार से नहीं मानते , हमें बांटने वालों को देख .

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