विश्वरूप माँ
आशाओं पर पानी फिरता , मैं उदास जब थम जाता ।
अम्मा तेरे आँचल में ही , स्वप्नों की फसल उगाता ।
बस्ती की संकरी गलियों में ,
गेंद-पतंगें-कुल्फी दिखती ,
खिड़की से तब मेरी आँखें,
हम उम्र की भीड़ से लगती .
बाबा के अनुशासन चलते , मेरा स्वर घुट-घुट जाता।
तब तरकारी के पैसों से , अम्मा से चवन्नी पाता।
आशाओं पर .......................................................
भरी दुपहरी तपी धूप में ,
भारी बस्ता पीठ दुखाए ,
विद्यालय से मिली ताड़ना,
कान - हथेली को झुलसाए .तिस पर अंकित रक्तिम लेखन , खूब रुलाई दे जाता।
अमराई सा तेरा आँचल , मधुर दिलासा दे जाता।
आशाओं पर .......................................................
जब फेल-पास के पत्रक पर,
अल्प अंक का साया छाता,
अनजाना भय नाग बना तब ,
प्राण शलभ को डस जाता .बोझिल कदमों से घर पर , स्याह उदासी भर जाता।
अम्मा तुझ से चुम्बन पा कर , नव उमंग से भर जाता।
आशाओं पर .......................................................
बाबा ने जब आँख मूँद ली,
घर का बोझ खूब सभाला,
मोदी की तू दाल बीन कर,
घर का छकडा खूब बढ़ाया.
तेरा हाथ बटाने में जब , लाचारी से भर जाता।
अम्मा तेरा देख समर्पण ,नये चरण में बढ़ जाता।
चाह सरीखा लो बन आया,
बड़ा आदमी बंगला- बाड़ी,
बीबी - बच्चे सीख सरीखे,
तिस पर आई मोटर गाडी.
टीस मेरी इतनी सी है माँ , काश तुझे दिखला पाता।
विश्वरूप माँ तुझ को पा कर , मैं श्रद्धा से भर जाता।
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