Monday, 7 May 2012

विश्वरूप  माँ 





आशाओं पर पानी फिरता , मैं  उदास जब थम  जाता ।
अम्मा तेरे आँचल  में ही , स्वप्नों की  फसल  उगाता ।


बस्ती की संकरी गलियों में ,
गेंद-पतंगें-कुल्फी  दिखती ,
खिड़की  से तब  मेरी आँखें,
हम उम्र की भीड़ से लगती .


बाबा के  अनुशासन  चलते , मेरा स्वर घुट-घुट  जाता।
तब  तरकारी  के  पैसों  से , अम्मा  से  चवन्नी  पाता।
आशाओं पर .......................................................


भरी   दुपहरी तपी धूप में ,
भारी  बस्ता  पीठ  दुखाए  ,
विद्यालय  से मिली ताड़ना,
कान - हथेली को झुलसाए .


तिस  पर अंकित  रक्तिम लेखन  , खूब  रुलाई  दे  जाता।
अमराई   सा   तेरा   आँचल , मधुर   दिलासा  दे  जाता। 
आशाओं पर .......................................................


जब फेल-पास के पत्रक पर,
अल्प अंक का साया छाता,
अनजाना भय नाग बना तब ,
प्राण शलभ  को डस जाता .


बोझिल  कदमों  से  घर  पर  , स्याह  उदासी  भर जाता।
अम्मा तुझ से चुम्बन  पा कर , नव  उमंग से भर  जाता। 
आशाओं पर .......................................................


बाबा ने जब आँख मूँद ली,
घर का बोझ खूब  सभाला,
मोदी की तू दाल  बीन कर,
घर का छकडा खूब बढ़ाया.

तेरा  हाथ  बटाने  में  जब , लाचारी  से  भर  जाता। 
अम्मा  तेरा  देख  समर्पण ,नये  चरण में बढ़ जाता।

चाह सरीखा लो बन आया,
बड़ा आदमी  बंगला- बाड़ी,
बीबी - बच्चे  सीख  सरीखे,
तिस पर आई  मोटर गाडी.

टीस  मेरी  इतनी  सी  है माँ , काश तुझे  दिखला पाता। 
विश्वरूप  माँ  तुझ  को  पा कर , मैं  श्रद्धा  से  भर जाता। 





  

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