अर्चन सामग्री लेके, सिक्ता-शिव रच कर ,
सागर किनारे राम, करते गुरु ध्यान .
मुद्रा लगी मंत्र गूंजे ,सागर ने चुप्पी साधी .
भागे-दौड़े आये वीर ,अनुज करे प्रणाम .
अर्चा कर समर्पित , सम्मुख हो बोले राम ,
सीता-शोध करने को , कहिये अब नाम .
सब वीर मिल कर , बोले हाथ जोड़ कर,
पुनीत काज के हेतु , समर्थ हनुमान.
राम का आदेश पाके , कपि चढ़ा श्रृंग पर ,
राह रोके खड़ी होके, सुरसा दहाड़ मारे ,
कहाँ जाते नभचारी ,तुम मेरे ग्रास हो.
हाथ जोड़े बोले कपि,लंका जाना महतारी,
आते ही ग्रस लीजिए, पूर्व प्रभु काज हो.
नागवंशी नहीं माने , वदन विकराल करे ,
हनुमान नहीं माने,वे भी ले विस्तार को.
शीघ्र लघु रूप लेके , कपि मुख घूम आये ,
सुरसा प्रसन्न बोली,वत्स जाओ काज को.
सागर किनारे राम, करते गुरु ध्यान .
मुद्रा लगी मंत्र गूंजे ,सागर ने चुप्पी साधी .
भागे-दौड़े आये वीर ,अनुज करे प्रणाम .
अर्चा कर समर्पित , सम्मुख हो बोले राम ,
सीता-शोध करने को , कहिये अब नाम .
सब वीर मिल कर , बोले हाथ जोड़ कर,
पुनीत काज के हेतु , समर्थ हनुमान.
राम का आदेश पाके , कपि चढ़ा श्रृंग पर ,
कपि ने उछाल भरी ,श्रृंग डगमगाता है.
नभचारी हनुमान , तीर सा बढ़ा हैं लंक ,
वीरवर समूह में , जोश भरभराता है.
राम मुग्ध होके देखे , लक्ष्मण हुंकार करे,
अंगद सुग्रीव सह , संत हरहराता है.
पवन की झोंक लगी , वारि पे जो थाप लगी ,
सागर खूब डोलता , अरि कंपकंपाता है.
नभचारी हनुमान , तीर सा बढ़ा हैं लंक ,
वीरवर समूह में , जोश भरभराता है.
राम मुग्ध होके देखे , लक्ष्मण हुंकार करे,
अंगद सुग्रीव सह , संत हरहराता है.
पवन की झोंक लगी , वारि पे जो थाप लगी ,
सागर खूब डोलता , अरि कंपकंपाता है.
राह रोके खड़ी होके, सुरसा दहाड़ मारे ,
कहाँ जाते नभचारी ,तुम मेरे ग्रास हो.
हाथ जोड़े बोले कपि,लंका जाना महतारी,
आते ही ग्रस लीजिए, पूर्व प्रभु काज हो.
नागवंशी नहीं माने , वदन विकराल करे ,
हनुमान नहीं माने,वे भी ले विस्तार को.
शीघ्र लघु रूप लेके , कपि मुख घूम आये ,
सुरसा प्रसन्न बोली,वत्स जाओ काज को.
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