Monday, 21 November 2011

पुनीत काज के हेतु , समर्थ हनुमान.

अर्चन सामग्री लेके, सिक्ता-शिव रच कर ,
                सागर किनारे राम, करते  गुरु  ध्यान .
मुद्रा लगी मंत्र गूंजे ,सागर ने चुप्पी साधी .
                भागे-दौड़े आये वीर ,अनुज करे प्रणाम .
अर्चा कर समर्पित , सम्मुख हो बोले राम ,
                सीता-शोध करने को , कहिये अब नाम .
सब वीर मिल कर , बोले हाथ जोड़ कर,
                 पुनीत काज के हेतु   ,  समर्थ  हनुमान. 
                 
राम का आदेश पाके , कपि चढ़ा श्रृंग पर ,
           कपि ने उछाल भरी ,श्रृंग डगमगाता  है.  
नभचारी हनुमान , तीर सा बढ़ा हैं लंक ,
           वीरवर  समूह  में , जोश  भरभराता है.
राम मुग्ध होके देखे , लक्ष्मण हुंकार करे,
            अंगद सुग्रीव सह , संत  हरहराता  है.
पवन की झोंक लगी  , वारि पे जो थाप लगी ,
            सागर खूब डोलता , अरि  कंपकंपाता है.

राह रोके खड़ी होके, सुरसा दहाड़ मारे ,
             कहाँ जाते नभचारी ,तुम मेरे ग्रास हो.
हाथ जोड़े बोले कपि,लंका जाना महतारी,
            आते ही ग्रस लीजिए, पूर्व प्रभु काज हो.
नागवंशी नहीं माने , वदन विकराल  करे ,
          हनुमान  नहीं माने,वे भी ले विस्तार को.
शीघ्र लघु रूप लेके , कपि मुख घूम आये ,
         सुरसा प्रसन्न बोली,वत्स जाओ काज को.

                     

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