प्राची अनुराग लिए , स्वर्ण किरणें फेंकती,
भाग फटे जाग हुई , विभीषण जागते .
राम-राम हरे राम , हरे-हरे राम-राम,
कोमल सुकंठ लिए , नाम श्री अलापते.
द्विज रूप धार कर, नम्र हुए हनुमान ,
चकित हैं विभीषण, विस्मित विराजते .
आप कौन द्विज श्रेष्ठ , हर हैं या हरि मेरे ,
राम हैं या रमापति ? पूछ के दुलारते.
नम्र होके बोले कपि , क्षमा करें संत श्रेष्ठ ,
द्विज नहीं वानर हूँ, यहाँ मैं प्रवासी हूँ .
हर नहीं हरी नहीं , नहीं राम रमापति ,
राम - दूत हनुमान , भारत निवासी हूँ .
सरल पुनीत आप , राक्षसों के मध्य कैसे ?
यही सब जानने को,अतीव जिज्ञासी हूँ.
मेरे स्वामी राम जी हैं, सीता उनकी प्रेयसी ,
सीता शोध के लिए ही,पूर्ण मैं प्रयासी हूँ.
नम्र होके विभीषण , बोले हनुमान से ,
आप मेरे अतिथी हैं , श्रम परिहारिए .
नित्य कर्म निवृत्ति ले, संध्या-वंदन कर लूं ,
राम -नाम ले ही लूं,अल्पाहार कीजिए.
आप जिस कार्य हेतु , यहाँ तक आये हैं ,
संकल्पबद्ध उसमें , सहयोगी जानिए.
धीर-बुद्धि विभीषण , यह कह बढ़ गये,
डूब गये चिन्तना में,ऊभ-चूभ मानिए.
भाग फटे जाग हुई , विभीषण जागते .
राम-राम हरे राम , हरे-हरे राम-राम,
कोमल सुकंठ लिए , नाम श्री अलापते.
द्विज रूप धार कर, नम्र हुए हनुमान ,
चकित हैं विभीषण, विस्मित विराजते .
आप कौन द्विज श्रेष्ठ , हर हैं या हरि मेरे ,
राम हैं या रमापति ? पूछ के दुलारते.
नम्र होके बोले कपि , क्षमा करें संत श्रेष्ठ ,
द्विज नहीं वानर हूँ, यहाँ मैं प्रवासी हूँ .
हर नहीं हरी नहीं , नहीं राम रमापति ,
राम - दूत हनुमान , भारत निवासी हूँ .
सरल पुनीत आप , राक्षसों के मध्य कैसे ?
यही सब जानने को,अतीव जिज्ञासी हूँ.
मेरे स्वामी राम जी हैं, सीता उनकी प्रेयसी ,
सीता शोध के लिए ही,पूर्ण मैं प्रयासी हूँ.
नम्र होके विभीषण , बोले हनुमान से ,
आप मेरे अतिथी हैं , श्रम परिहारिए .
नित्य कर्म निवृत्ति ले, संध्या-वंदन कर लूं ,
राम -नाम ले ही लूं,अल्पाहार कीजिए.
आप जिस कार्य हेतु , यहाँ तक आये हैं ,
संकल्पबद्ध उसमें , सहयोगी जानिए.
धीर-बुद्धि विभीषण , यह कह बढ़ गये,
डूब गये चिन्तना में,ऊभ-चूभ मानिए.
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