अब सुनो हनुमंत , सीता के लिए कहूँ ,
विभीषण बोलते हैं, पर वाणी काँपती .
दशग्रीव हर कर , सती सीता साथ लाया ,
मंदिर चंचल हुए , धरा यहाँ डोलती .
सागर भी क्रुद्ध हुआ , अति वृष्टि होने लगी,
अग्नि अति क्रुद्ध हुई ,जीवन को सोखती.
झंझावात के ही मध्य , अशोक वन में गया ,
तब से ही नभ तले ,राम-नाम बोलती.
कहते हैं विभीषण, अशोक वन की राह ,
हो कर के ध्यान मग्न,सुनते हनुमान.
पूरी राह कह कर , चुप हुए संत श्रेष्ठ ,
रुदन में विभीषण , काँपते हनुमान.
बलशाली जम्हाई ले, वज्रांग तन गये ,
लोल हुए अंग - अंग , हांफते हनुमान.
मित्र श्री !उचित लगे , उसे ही आप कीजिये ,
लेकर के अनुमति , बढ़ते हनुमान .
कपि ले के सूक्ष्म रूप, उतरे भूधर पार ,
पहुंचे सघन वन , जो अतीव भारी है.
गगन सुभेदती है, बहु उच्च विटपमाल,
पन्नग सी हरियाली,अति मनोहारी है.
कई-कई पुष्प रूप, कई-कई फल रूप ,
भ्रमर गुंजार तहाँ , बहु रसकारी है.
दिवस में रजनी की , गति जहाँ रहती है ,
पग-पग निशाचर , खूब भयकारी है.
विभीषण बोलते हैं, पर वाणी काँपती .
दशग्रीव हर कर , सती सीता साथ लाया ,
मंदिर चंचल हुए , धरा यहाँ डोलती .
सागर भी क्रुद्ध हुआ , अति वृष्टि होने लगी,
अग्नि अति क्रुद्ध हुई ,जीवन को सोखती.
झंझावात के ही मध्य , अशोक वन में गया ,
तब से ही नभ तले ,राम-नाम बोलती.
कहते हैं विभीषण, अशोक वन की राह ,
हो कर के ध्यान मग्न,सुनते हनुमान.
पूरी राह कह कर , चुप हुए संत श्रेष्ठ ,
रुदन में विभीषण , काँपते हनुमान.
बलशाली जम्हाई ले, वज्रांग तन गये ,
लोल हुए अंग - अंग , हांफते हनुमान.
मित्र श्री !उचित लगे , उसे ही आप कीजिये ,
लेकर के अनुमति , बढ़ते हनुमान .
कपि ले के सूक्ष्म रूप, उतरे भूधर पार ,
पहुंचे सघन वन , जो अतीव भारी है.
गगन सुभेदती है, बहु उच्च विटपमाल,
पन्नग सी हरियाली,अति मनोहारी है.
कई-कई पुष्प रूप, कई-कई फल रूप ,
भ्रमर गुंजार तहाँ , बहु रसकारी है.
दिवस में रजनी की , गति जहाँ रहती है ,
पग-पग निशाचर , खूब भयकारी है.
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