ऊंचे- ऊंचे सदन जो, गगन को भेदते,
पूर्ण देख आते मानो, कभी नहीं देखे हैं.
भांत-भांत लता कुञ्ज , सघन विटप माल .
पूर्ण घूम आते मानो, कभी नहीं घूमे हैं.
भूतल में कक्ष बने, गहरे जो गह्वर थे ,
पूर्ण फिर आते मानो,कभी नहीं फिरे हैं.
ऐसा कोई कोना नहीं , जहाँ माँ को देखा नहीं ,
देखते हैं ऐसे मानो, ,कभी नहीं देखे हैं.
मंदिर दशानन का ,भौतिकता से पूर्ण है,
भित्ति-गच स्वर्ण में जो,नील मणि मुख्य है.
वातायन-सुद्वार के , गंध के कपाट हैं,
सूक्ष्म हुई नक्काशी में , रक्त मणि मुख्य है.
वर्तुल सोपान बने, पन्नग से रचित जो,
छाजन पे चित्रकारी , मुक्ता - मणि मुख्य है.
कई-कई स्वर्ण -कोश , कई-कई रजत कोश,
अनेक हीरक कोश , पदम् - मणि मुख्य है.
देख कर विलम्ब होता ,शीघ्र बढे हनुमान ,
सारे कक्ष छान लिए , महतारी नहीं है.
सुसज्जित शयन कक्ष , सुनिर्मल पर्यंक ले,
दशानन निद्रा-मग्न ,पुनिताई नहीं है.
अन्य एक मंदिर में , भद्र - जन निद्रा मग्न ,
हरि - हर शोभित जो , कुटलाई नहीं है.
राम दूत चिन्तते हैं , सीता शोध कार्य हेतु ,
हरि- भक्त मित्रता में , कदराई नहीं है.
पूर्ण देख आते मानो, कभी नहीं देखे हैं.
भांत-भांत लता कुञ्ज , सघन विटप माल .
पूर्ण घूम आते मानो, कभी नहीं घूमे हैं.
भूतल में कक्ष बने, गहरे जो गह्वर थे ,
पूर्ण फिर आते मानो,कभी नहीं फिरे हैं.
ऐसा कोई कोना नहीं , जहाँ माँ को देखा नहीं ,
देखते हैं ऐसे मानो, ,कभी नहीं देखे हैं.
मंदिर दशानन का ,भौतिकता से पूर्ण है,
भित्ति-गच स्वर्ण में जो,नील मणि मुख्य है.
वातायन-सुद्वार के , गंध के कपाट हैं,
सूक्ष्म हुई नक्काशी में , रक्त मणि मुख्य है.
वर्तुल सोपान बने, पन्नग से रचित जो,
छाजन पे चित्रकारी , मुक्ता - मणि मुख्य है.
कई-कई स्वर्ण -कोश , कई-कई रजत कोश,
अनेक हीरक कोश , पदम् - मणि मुख्य है.
देख कर विलम्ब होता ,शीघ्र बढे हनुमान ,
सारे कक्ष छान लिए , महतारी नहीं है.
सुसज्जित शयन कक्ष , सुनिर्मल पर्यंक ले,
दशानन निद्रा-मग्न ,पुनिताई नहीं है.
अन्य एक मंदिर में , भद्र - जन निद्रा मग्न ,
हरि - हर शोभित जो , कुटलाई नहीं है.
राम दूत चिन्तते हैं , सीता शोध कार्य हेतु ,
हरि- भक्त मित्रता में , कदराई नहीं है.
No comments:
Post a Comment