Sunday, 27 November 2011

ऊंचे- ऊंचे सदन जो, गगन को भेदते,
                      पूर्ण देख आते मानो, कभी नहीं देखे हैं.
भांत-भांत लता कुञ्ज , सघन विटप माल .
                      पूर्ण  घूम आते मानो, कभी नहीं घूमे हैं.
भूतल में कक्ष बने, गहरे जो गह्वर थे ,
                      पूर्ण फिर आते मानो,कभी नहीं फिरे हैं.
ऐसा कोई कोना नहीं , जहाँ माँ को देखा नहीं ,
                      देखते हैं ऐसे मानो, ,कभी नहीं देखे  हैं.


मंदिर दशानन का ,भौतिकता से पूर्ण है,      
                       भित्ति-गच स्वर्ण में जो,नील मणि मुख्य  है.
वातायन-सुद्वार के , गंध के कपाट हैं,
                       सूक्ष्म  हुई  नक्काशी में , रक्त मणि मुख्य  है.
वर्तुल सोपान बने,  पन्नग से रचित जो,
                        छाजन पे  चित्रकारी , मुक्ता - मणि मुख्य  है.
कई-कई स्वर्ण -कोश , कई-कई रजत कोश,
                        अनेक  हीरक  कोश , पदम् - मणि मुख्य  है.


देख कर विलम्ब होता ,शीघ्र बढे हनुमान ,
                          सारे कक्ष छान लिए , महतारी नहीं है.
सुसज्जित शयन कक्ष , सुनिर्मल पर्यंक ले,
                          दशानन निद्रा-मग्न ,पुनिताई नहीं है.
अन्य एक मंदिर में , भद्र - जन निद्रा मग्न ,
                          हरि - हर शोभित जो , कुटलाई नहीं है.
राम दूत चिन्तते हैं  , सीता शोध कार्य हेतु ,
                          हरि- भक्त  मित्रता  में , कदराई नहीं है.               

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