मार कर के फर्राटा , वीर गया उस पार ,
भूधर की तलहटी , बाज सम उतरा .
तोड़ कर के सन्नाटा , कपि चढ़ा भूधर पे,
उच्च एक श्रृंग पर , वह्नी सम दहका.
मार कर के घर्राटा , दृष्टि डाली चहुँ ओर,
हरी-भरी प्रकृति मे ,मणि सम चमका.
दूर से आया चर्राटा , जहाँ स्वर्ण नगरी थी,
तमतमा कर बढ़ा , रवि सम दमका .
स्वर्ण मढ़ी लंका खड़ी ,पग-पग रत्न जड़े ,
मार कर के घर्राटा , दृष्टि डाली चहुँ ओर,
हरी-भरी प्रकृति मे ,मणि सम चमका.
दूर से आया चर्राटा , जहाँ स्वर्ण नगरी थी,
तमतमा कर बढ़ा , रवि सम दमका .
स्वर्ण मढ़ी लंका खड़ी ,पग-पग रत्न जड़े ,
आभ पड़े नगरी पे, चक्षु चुंधियाती है .
बहु पीन परकोट , खूब फैले राज पथ ,
फणी सम वीथियों में, बुद्धि चकराती है .
यत्र-तत्र ताल कूप , तडाग बाग़ नालियाँ ,
झरनों की झरन में , वृष्टि मंडराती है.
ठौर-ठौर मधुशाला , ठौर-ठौर वधशाला ,
देख भ्रष्ट मर्यादा को,आत्मा तलफाती है.
लेकर के सूक्ष्म रूप , नर-नारी बीच पैठ ,
गतिविधि देख कपि , सुचर से बढ़ते.
द्वार-द्वार पहुँच के, पोल-पोल पैठ कर ,
कक्ष-कक्ष छान कर, शोधक से लगते.
फिर नयी ठोर दिखे, फिर नयी आस बंधे ,
तत क्षण दौड़ जाते, धावक से लगते.
मिले नहीं महतारी, आँखे भर-भर आती ,
वक्ष बैठ-बैठ जाता , बालक से लगते .
बहु पीन परकोट , खूब फैले राज पथ ,
फणी सम वीथियों में, बुद्धि चकराती है .
यत्र-तत्र ताल कूप , तडाग बाग़ नालियाँ ,
झरनों की झरन में , वृष्टि मंडराती है.
ठौर-ठौर मधुशाला , ठौर-ठौर वधशाला ,
देख भ्रष्ट मर्यादा को,आत्मा तलफाती है.
लेकर के सूक्ष्म रूप , नर-नारी बीच पैठ ,
गतिविधि देख कपि , सुचर से बढ़ते.
द्वार-द्वार पहुँच के, पोल-पोल पैठ कर ,
कक्ष-कक्ष छान कर, शोधक से लगते.
फिर नयी ठोर दिखे, फिर नयी आस बंधे ,
तत क्षण दौड़ जाते, धावक से लगते.
मिले नहीं महतारी, आँखे भर-भर आती ,
वक्ष बैठ-बैठ जाता , बालक से लगते .
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