Tuesday, 22 November 2011

अरि कंपकंपाता है.







ब्रह्मा आये भारती ले , लक्ष्मी-पति रमा सह,
                  उमा महेश पहुँचे , पहुँचे हैं  गणेश .
सुरपति हर्ष करे, देवियाँ विरुद कहे,
                देव मुनि वृष्टि करे,पुष्प लिए  विशेष  . 
परीक्षा लेली देव ने, उतीर्ण हनुमान हैं ,
                मंद -मंद उमा हँसे , पुलकित महेश .
सुरसा कहे  जाइए , प्रभु जी काज साधिए,  
               हृदय में संजोइये ,  रघुकुल नरेश .


सागर के मध्य रह , चेटक करे लंकिनी ,
                नभचर मुग्धकर, पकड़ के खाए है.
मथ डाले पक्ष उनके, कंठ को मरोड़ डाले,
                अंग सब चट कर , रक्त से नहाए है.
पूर्व से ही हनुमान , सावधान हो गए,
               चेटक चला ही नहीं,थाप खाए जाए है. 
देखा वर वीर ने भी , काज में  विलम्ब  होए ,
                मुष्टिका प्रहार कर , लंकिनी सुलाए है.
                









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