ब्रह्मा आये भारती ले , लक्ष्मी-पति रमा सह,
उमा महेश पहुँचे , पहुँचे हैं गणेश .
सुरपति हर्ष करे, देवियाँ विरुद कहे,
देव मुनि वृष्टि करे,पुष्प लिए विशेष .
परीक्षा लेली देव ने, उतीर्ण हनुमान हैं ,
मंद -मंद उमा हँसे , पुलकित महेश .
सुरसा कहे जाइए , प्रभु जी काज साधिए,
हृदय में संजोइये , रघुकुल नरेश .
सागर के मध्य रह , चेटक करे लंकिनी ,
नभचर मुग्धकर, पकड़ के खाए है.
मथ डाले पक्ष उनके, कंठ को मरोड़ डाले,
अंग सब चट कर , रक्त से नहाए है.
पूर्व से ही हनुमान , सावधान हो गए,
चेटक चला ही नहीं,थाप खाए जाए है.
देखा वर वीर ने भी , काज में विलम्ब होए ,
मुष्टिका प्रहार कर , लंकिनी सुलाए है.
देव मुनि वृष्टि करे,पुष्प लिए विशेष .
परीक्षा लेली देव ने, उतीर्ण हनुमान हैं ,
मंद -मंद उमा हँसे , पुलकित महेश .
सुरसा कहे जाइए , प्रभु जी काज साधिए,
हृदय में संजोइये , रघुकुल नरेश .
सागर के मध्य रह , चेटक करे लंकिनी ,
नभचर मुग्धकर, पकड़ के खाए है.
मथ डाले पक्ष उनके, कंठ को मरोड़ डाले,
अंग सब चट कर , रक्त से नहाए है.
पूर्व से ही हनुमान , सावधान हो गए,
चेटक चला ही नहीं,थाप खाए जाए है.
देखा वर वीर ने भी , काज में विलम्ब होए ,
मुष्टिका प्रहार कर , लंकिनी सुलाए है.
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