नित्य कर्म से निवृत्ति,शीघ्र कर विभीषण ,
सरोवर तट पर , हंस सम दिखते .
अश्व - दश साध कर,संध्या-वंदन करते ,
अर्चन समय पर ,पुष्प सम खिलते.
गुरु-गौरी पूज कर , राम-नाम भज कर ,
कपि-वर भेंट कर , मित्र सम लगते.
गुणवंत हनुमान , तत्काल बोल उठे ,
कहो मित्र आप कैसे,दुखी सम रहते ?
भूपाल जिस देश का है कुत्सित-अहंकारी ,
कल्पित है सुख वहाँ , सत्य है बुद्धिमंत.
है उत्कोची सभासद , कर्मचारी - अधिकारी ,
जीवन अशांत वहाँ , सच कहूँ गुणवंत .
स्वेच्छाचारी जन-वृन्द , भ्रष्ट-मूल्य में जिये ,
ऐसा राज लुप्त होगा,देखिये ज्योतिर्वंत
आह लम्बी भर कर, बोल गये विभीषण ,
अग्रज हैं दशग्रीव , दुख है हनुमंत .
अपहरण - तस्करी,लूट जहां गर्व हेतु,
कपि-श्रेष्ठ समझिए , तत्र मुख्य स्वार्थ है.
शोषक व अत्याचारी , पाते हैं प्रतिष्ठा जहाँ ,
प्रज्ञा वहाँ मर जाती , तत्र तु कदर्थ है.
दश अश्व मुक्त कर, तन - रथ डोलता है ,
मार वहाँ मुख्य होता , तत्र सर्व व्यर्थ है.
सीता सती हरी जाती , नारी वस्तु मानी जाती,
वहाँ सुख - शांति नहीं , तत्र तु अनर्थ है.
सरोवर तट पर , हंस सम दिखते .
अश्व - दश साध कर,संध्या-वंदन करते ,
अर्चन समय पर ,पुष्प सम खिलते.
गुरु-गौरी पूज कर , राम-नाम भज कर ,
कपि-वर भेंट कर , मित्र सम लगते.
गुणवंत हनुमान , तत्काल बोल उठे ,
कहो मित्र आप कैसे,दुखी सम रहते ?
भूपाल जिस देश का है कुत्सित-अहंकारी ,
कल्पित है सुख वहाँ , सत्य है बुद्धिमंत.
है उत्कोची सभासद , कर्मचारी - अधिकारी ,
जीवन अशांत वहाँ , सच कहूँ गुणवंत .
स्वेच्छाचारी जन-वृन्द , भ्रष्ट-मूल्य में जिये ,
ऐसा राज लुप्त होगा,देखिये ज्योतिर्वंत
आह लम्बी भर कर, बोल गये विभीषण ,
अग्रज हैं दशग्रीव , दुख है हनुमंत .
अपहरण - तस्करी,लूट जहां गर्व हेतु,
कपि-श्रेष्ठ समझिए , तत्र मुख्य स्वार्थ है.
शोषक व अत्याचारी , पाते हैं प्रतिष्ठा जहाँ ,
प्रज्ञा वहाँ मर जाती , तत्र तु कदर्थ है.
दश अश्व मुक्त कर, तन - रथ डोलता है ,
मार वहाँ मुख्य होता , तत्र सर्व व्यर्थ है.
सीता सती हरी जाती , नारी वस्तु मानी जाती,
वहाँ सुख - शांति नहीं , तत्र तु अनर्थ है.
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