उदासियाँ बहुत खलती हैं , जरा हँस के दिखाइए .
इसी बहाने यहाँ फूलों को , मुस्कराने भी दीजिए .
गलतियां हुई है बहुत ही,
कभी हम से ,कभी तुम से .
कोशिश भी हुई मनाने की,
कभी तुम से ,कभी हम से .
मौसम यूं ही न बीत जाए , इस रुत को सजाइए .
इसी बहाने यहाँ फूलों को , मुस्कराने भी दीजिए .
चुपके -चुपके पढ़ते होंगे ,
तुम हमारे दिये ख़त को .
पढ़-पढ़ के भिगोते होंगे,
तुम हमारे दिये ख़त को .
ख़त में लिखी हमारी बातें , अब यूं ही न बहाइए .
इसी बहाने यहाँ फूलों को , मुस्कराने भी दीजिए .
छेड़ दी है जीवन की सितार ,
तेरे - मेरे सरगम सजाने को .
बहाया है जीवन का झरना ,
तपिश में यहाँ भीग जाने को.
हम-तुम जले दूर रह कर , अब बाहों में समाइए .
इसी बहाने यहाँ फूलों को ,मुस्कराने भी दीजिए .
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