Thursday, 12 July 2012

ऐसा होगा सोचा भी नहीं .



जाते हुए मुड़ के देखे भी नहीं वे , ऐसा  होगा सोचा भी नहीं  .
गीला कर  देंगे मौसम को भी वे , ऐसा होगा सोचा भी नहों .

गीतों-गजलों में उन को मढ़ दूं , जैसे है वो कंचन का पानी .
पहले ही फिसल गये हाथों से वे ,ऐसा होगा सोचा भी नहीं .

कल तक तो चर्चा थी मेरे हैं वे , ऐसा सब लोग कहा करते .
आज हुए हैं हवा के झोंके  से वे , ऐसा होगा सोचा भी नहीं .

कल तक सांसों  के  सरगम थे , देख कर जी लिया करते थे .
सधे हुए तारों  को  तोड़ चले हैं वे ,ऐसा होगा सोचा भी नहीं .

परछाई बन-बन कर के वे , कभी प्यार की बौछारें करते थे .
मेरा ही जनाजा उठाने आते हैं वे , ऐसा होगा सोचा भी नहीं.

1 comment:

  1. कृपया,रचना पढ़ कर अपने विचारों से अवश्य अवगत कराने की कृपा करें. कृपया आप अपनी टिप्पणियों से यहाँ लाभान्वित करें.सादर धन्यवाद.

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