Thursday, 19 July 2012

रावण की सभा में विभीषण का पहुँचना-

कोई वीर ओज भर , सभा मध्य उठ कहे ,
                     नृप आप निश्चिंत हो , वारुणी को पीजिए .
अभी इसी काल जाऊं , दोनों भ्राता मार आऊं ,
                     सहज  है  मेरे  लिए , कौशल को  देखिए .
अन्य वीर क्रोध भर , तीक्ष्ण शस्त्र धर कहे,
                     राम वाहिनी को अब , दण्डित ही मानिए .
लक्ष्मण सुग्रीव सह , राम का दमन करूँ ,
                     वाहिनी  चर्वण  करूँ  , सुख कर सोइए .

इसी मध्य वीरमणि , विभीषण आ कर के ,
                     रावण-सम्मान किया ,उचित प्रणाम से .
ऊर्ध्व हस्त तान कर , नृप जयघोष कर ,
                     रावण-प्रसन्न किया , उचित सम्मान से .
नृप मन मोद भर , आसन संकेत किया ,
                     अनुज ने आसन को , लिया व्यवहार से .
रावण भी अनुज को , देख रहा एक दृष्टि ,
                     मिलन वो चाहे मानो , अनुज विचार से .

आसन को पा कर के , बैठ गए विभीषण ,
                     तन से अचल लगे , सचल अन्तर था .
रावण अनुज देखे , अनुज रावण देखे ,
                     रावण सभा के मध्य , मोन ही प्रमुख था .
देख कर विभीषण , रक्ष वर चुप हुए ,
                     जैसे छिपे तारागण , रवि का प्रहर था .
उचित समय जान , विभीषण बोल पड़े ,
                     वाणी तो सरल रही , संवाद प्रखर था .

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