बादल बरसे गरज -गरज के,
यही समय की मांग उठी ,
बादल तुम हो महाकाल .
अब नन्हें पौधे सूख गये ,
हरित धरा भी पीत हुई .
दूर -दूर तक भरी निराशा ,
लो सृष्टि सारी क्षीण हुई.
सृष्टि विकसे लरज-लरज के ,
यही धरा की चाह उठी ,
बादल तुम हो महाकाल .
बादल तेरा है प्रथम रूप ,
सच मानो वह है ब्रह्म-रूप ,
तरल वृष्टि का वर्षण कर ,
धरो-धरो तुम रचन-रूप .
सृजन करो चहक-चहक के ,
ले कर धरती-ब्रह्माणी ,
बादल तुम हो महाकाल .
नव अंकुरण फिर से फूटें,
नन्हें पौधे फिर से झूमे ,
पुष्ट-पीन शाखाओं पर ,
फिर से कोमल कोंपल झूले .
नव-नव सृजन प्राण संवाहक ,
इसीलिए तुम प्राणाधार ,
बादल तुम हो महाकाल .
रूद्र-रूप भी तुम हो आओ ,
डम-डम डमरू नाद सुनाओ,
बड़े वेग की धार बहा कर ,
जीर्ण-शीर्ण अविलम्ब हटाओ .
अब धरती गौरी-रूप चाहती ,
असम्यक का करो संहार ,
बादल तुम हो महाकाल .
नव सृष्टि का पालन करने ,
लेना ही होगा पालक-रूप ,
सरसे-.विकसे यह नव सृष्टि ,
सच पूछो तो विष्णु-रूप .
दयित भाव से बरसो-बरसो ,
मान लिया है पालनहार,
बादल तुम हो महाकाल .
आज धरा को फिर से वर लें ,
मंगल कुमकुम इसमें भर दें ,
अब अचला चपला सी कर दे.
नए सृजन की शक्ति भर दें ,
जड़ता के बंधन काट-काट ,
स्वीकार करें अब सृजनभार ,
बादल तुम हो महाकाल .
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