Tuesday, 15 January 2013

रचयिता होता है वह ब्रह्मा होता है.


समतल जमीन पर ,
निश्चिन्त हो कर चलना ,
होता है बहुत मनभावन .
ढलानों पर फिसलने के लिए,
ह्रदय होता है बहुत उतावला .
परन्तु ,
चढ़ाई को देख कर ,
अच्छे-अच्छे योद्धाओं के
पैरों तले जमीन ही ,
खिसक जाती है .
हर परिस्थिति में ,
अनासक्त रहने वाला ,
जो भी होता है बिरला होता है ,
रचयिता होता है वह ब्रह्मा होता है.

पिता है आदर्श रचयिता ,
घर के लिए ,
उनकी अनासक्ति देखी ,
कच्चे-पक्के घर के प्रति ,
खेती-बाड़ी के प्रति ,
ढोर-डंगर के प्रति ,
और
अपनी काया के अंश रूप ,
अपनी ही सन्तति के प्रति ,
जिस को जब-जब जितना देय,
देता है अनासक्त हो कर,
और उस के बाद फिर से
खप जाता है दुनियादारी में,
वह अनासक्त पिता ही ,
स्वर्ग का निर्माता होता है ,
जो भी होता है बिरला होता है ,
रचयिता होता है वह ब्रह्मा होता है.

देखा भवन बनाते ,
कुशल कारीगर को ,
वह अनासक्त  ,
अपने साधन के प्रति  ,
वह अनासक्त  ,
चाँदी जैसी सिक्ता के प्रति,
वह अनासक्त  ,
ईंट और उपल के प्रति,
जिसकी जितनी जहाँ जरूरत ,
उस को ही वह हाथ लगाता ,
फिर अनासक्त भाव से ,
आगे बढ़ जाता ,
वह अनासक्त कारीगर ही ,
देवालय का निर्माता होता है.
जो भी होता है बिरला होता है ,
रचयिता होता है वह ब्रह्मा होता है.

देखा जन-वृन्द में ,
कवि को कलम चलाते ,
वह अनासक्त ,
कलम और पत्रों के प्रति ,
वह अनासक्त ,
शब्दों और बिम्बों  के प्रति,
वह अनासक्त ,
छंदों के बंधन के प्रति
वह अनासक्त ,
वैभव और यश के प्रति ,
वह तटस्थ हो कर रचना करता,
सत्य -संवाहक होकर ,
फिर अनासक्त भाव से ,
जन-वृन्द से जुड़ जाता ,
वह अनासक्त जनकवि ही ,
अमर-काव्य का निर्माता होता है .
जो भी होता है बिरला होता है ,
रचयिता होता है वह ब्रह्मा होता है.

             - त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द.

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