रोशनी सूरज से लिए मैं चला हूँ .
मैं धरा का पुत्र हूँ धरा पर पला हूँ .
छल-छंद सारे ,
जानता हूँ ,
मैं निशा के.
षड्यंत्र सारे ,
जानता हूँ ,
मैं निशा के .
अंधेरों को दफन करता मैं बढ़ा हूँ.
मैं धरा का पुत्र हूँ धरा पर पला हूँ .
छलकते प्याले
जानता हूँ ,
मैं मधु के .
टूटते प्याले ,
जानता हूँ ,
मैं मधु के .
भोर से संध्या तक गंगा में बहा हूँ .
मैं धरा का पुत्र हूँ धरा पर पला हूँ .
प्यार-रिश्ते ,
जानता हूँ ,
मैं मृदा के .
कर्ज-अनुग्रह ,
जानता हूँ ,
मैं मृदा के .
मृदा से संसार अपना गढ़ रहा हूँ .
मैं धरा का पुत्र हूँ धरा पर पला हूँ .
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित , राजसमन्द.
No comments:
Post a Comment