मेरा प्यारा देश !
जिस के बिना ,
मेरा अस्तित्व नहीं ,
वह है तो मैं हूँ ,
वो है मेरा प्राण .
स्वर्ण सी भोर ,
रजत सा दिन ,
ताम्र सी सुर्ख संध्या,
जहां
सप्तरंगी संस्कृति ,
षड ऋतु के साथ ,
वहन करते हैं ,
गलबहियों में बंधे ,
आप सी रिश्ते ,
हरित दुर्वा से ,
फलित होते हैं,
ऐसा मेरा देश,
वो है मेरा प्राण .
राष्ट्र ध्वज
और
राष्ट्र गान ,
मेरे अस्तित्व की पहचान ,
सबका आदर ,
सब का मान ,
सद्चरित्र का गान ,
ऐसा मेरा देश
हिमगिरि से
दक्षिण सागर तक ,
गौरवशाली मरुधरा से,
पूर्वांचल की सरस धरा तक,
अक्षुण्ण मेरा देश ,
मेरे रोम-रोम में ,
नित स्पंदित ,
वो है मेरा प्राण .
संविधान के निर्देशों पर ,
विकसित गरिमामय गणतंत्र ,
विविध पंथ ,
और उपासना ,
पलते हैं ,
ले मानवता का मन्त्र ,
प्रेम -अहिंसा
और विश्वबंधुत्व
का पाठ पढ़ाता,
मेरा स्वर्ण विहग सा देश ,
मेरी पूजा और भगवन सा,
मेरा भारत देश महान ,
मेरा कतरा-कतरा ,
उसे समर्पित ,
वो है मेरा प्राण .
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित , राजसमन्द .
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