अब आ गया है समय ,
अपनी सीमाओं को ,
मुखर हो कर दे दूं ,
एक विशाल विस्तार,
आवश्यक हो गया है ,
मुझे देना ही होगा ,
अपने चारों और फैले,
वृत्त का परिचय,
और ,
लेना होगा समंदर पार,
बैठे मित्रों के ,
वृतों के परिचय .
मेरे वृत्त में कई सारे,
अनगिनत छोटे-बड़े ,
घूमते हुए हैं वृत्त ,
और ,
वे सब के सब वृत्त ,
श्याम-श्वेत रूप लिए ,
मेरे अस्तित्त्व के लिए,
करते हैं परिचय का काम ,
ये सारे वृत्त ,
मेरे वृत्त में रह कर ,
रूपायित कर चुके हैं ,
चिड़िया के घोंसले की तरह ,
मेरा स्पष्ट त्रिकाल .
त्रिकाल ! हाँ त्रिकाल ,
मेरा-तुम्हार है नियंता,
शिव स्वरूप ,
महाकाल की तरह ,
जो सुसज्जित है ,
वात्सल्यमयी शक्ति की ,
ऊर्जामयी गति से ,
जिस से करते हैं ,
सब की सटीक ,
जीवन की समालोचना.
मेरे वृत्त और उसमें फैले,
उपवृत्तों की संरचना भी ,
करते हैं मेरे आराध्य
शिव-स्वरूप त्रिकाल महाकाल.
उसी त्रिकाल की ही ,
अभिव्यक्ति है ,
समंदर के पार ,
बैठे मेरे ज्ञात-अज्ञात ,
मित्रों के वृत्तों की .
मेरी कोशिश होगी ,
मैं कर सकूं स्थापित ,
अलग-अलग वातावरण में,
बने भिन्न-भिन्न वृत्तों में,
कुछ एक रूपता ,
कुछ सम रूपता
और ,
स्ववृत्त की सीमाओं को,
दे सकूं मानवीय विस्तार,
आखिर कर ,
सब वृत्तों का है नियंता -
शिव-स्वरूप त्रिकाल महाकाल.
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द.
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