Wednesday 22 May 2013

आपस में ही परिचय कर लेते हैं

मैं जिसे खोजने निकला ,
वह तुम हो ,
जिसे मैं पहले से ही जानता हूँ ,
वह भी तुम हो .

फिर यह अपरिचय क्यों ?
तुम कह सकते हो ,
हम पहले कभी मिले नहीं ,
हमने कभी एक दूसरे को जाना नहीं .........

क्या यह सही है ?
जब कि तुम्हारा और मेरा स्वामी एक ही है .
यदि हाँ ,
फिर यह हमारी भूल है ,
हम आपस में नहीं मिले .

हमें स्वामी के सम्मुख खडा होना होगा ,
वहां हमसे सवाल और जवाब होंगे .
क्या हम उनके आगे खड़े रह पायेंगे ?
तो फिर...........

हम एक काम कर लेते हैं,
अपरिचय समाप्त कर देते हैं ,
और ,
आपस में ही परिचय कर लेते हैं ,
अच्छे बच्चों की तरह.

त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द ( राज.)

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