Saturday, 8 October 2011

तभी तो संवर पाएगी बेटियों सी बच्चियाँ,

शान्ति की देवियाँ ,
तुम्हें मिला है -
शान्ति का नोबेल पुरस्कार,
परन्तु देवियों !
अभी जरुरत है ,
देश और दुनिया को 
तुम जैसी कई-कई देवियाँ.

दुनियाँ के किसी भी कोनें में,
मार दिये जाते हैं गर्भस्थ शिशु ,
मात्र इसलिए कि गर्भस्थ शिशु ,
बच्चा नहीं,वह  है बच्ची,
अभी तो चलना ही  चलना है 
और-
अपनी आँख साधनी है ,
तभी तो बच पाएगी गर्भस्थ बच्चियाँ,
चाहिए शान्ति की   कई-कई देवियाँ.

गर्भस्थ बच्ची का हो गया जन्म ,
क्या यह तय है कि वह बची रहेगी ?
सच तो यह है कि-
वह कभी भी  हो जायेगी शिकार ,
अपने ही किसी के हाथों .

भूख से मार देगी उसे अपनी अम्मा,
उसकी नाक में ठूंस देंगी राख दाई माँ,
पानी में डूबा देगा उसे उसका अब्बा,
या, और कोई इसी तरह ,.................
घात लगाये बैठें हैं  बहेलिये ,
हो जाएगी  किसी के हाथों शिकार,

अभी तो काली स्याह रात बाकी  है,
और-
अपनी मुट्ठियाँ कसनी बाकी हैं ,
तभी तो बच पाएगी सद्यः प्रसूता बच्चियाँ,
चाहिए शान्ति की कई-कई देवियाँ .

आँगन में नाचती है बच्चियाँ,
गली में खेलती है बच्चियाँ,
स्कूल आती-जाती है बच्चियाँ,
भेड़ियों के निशाने पर है बच्चियाँ,
उठाली जायेगी ,नोच दी जायेगी ,
या-
किसी चकले पर बेच दी जायेगी,
अनंत यंत्रणाओं के समंदर में ,
डूबोदी जायेंगी फूल सी बच्चियाँ,
अभी तो छद्म युद्ध   बाकी  है,
और- 
तलवारें भांजना बाकी है,
तभी तो बच पाएगी फूल सी बच्चियाँ,
चाहिए शान्ति की कई-कई देवियाँ .

शान्ति की देवियाँ !
पहचानों अपने अधिकार,

तथाकथित आचरण के ठेकेदार,
परदे  में धकेलते हैं  बच्चियों को ,
सरे राह खदेड़तें हैं बच्चियों को ,
विश्रामालयों में पीटते हैं बच्चियों को ,
या-
उपभोग की वस्तु मानते है बच्चियों को,
जला डालते  हैं नराधम बच्चियों को ,
अभी तो अस्तित्व की लड़ाई   बाकी  है,
और-
नराधमों की चीर-फाड़ बाकी है,
तभी तो संवर  पाएगी बेटियों  सी बच्चियाँ,
चाहिए शान्ति की कई-कई देवियाँ .














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