Tuesday, 11 October 2011

मेरे पहले-पहले प्यार,

मेरे  पहले-पहले प्यार,
तुम सात समुन्दर पार,
कैसे हो ................


तुम शरद पूनो का ,
चाँद बन कर ,
ताकने जो चले  आये  ,
इतना पूछने का हक़ ,
मेरा भी बनता है,

आज भी तुम 
चाँद के रूप में आ  हँस रहे .
आज तुमको पकड़ने की कोशिश 
कतई नहीं करूंगा ,
नहीं तो तुम भाग जाओगे 
हिरन की तरह  कुलांचे मारते .

रात भर बस तुम्हें
ताकता ही रहूँगा ,
फिर तुम लौट कर ,
साल भर बाद आओगे.
और-
मेरी सिसकियों के संगीत में 
दिशाएँ भीग जायेंगी .


मेरे  पहले-पहले प्यार,
तुम  आजाओ इस  पार,
क्या तुम आओगे  ................


ओ ! शरद पूनो के चाँद  ,
जब से तुम छोड़ कर गए  ,
सब कुछ बदला-बदला सा है ,
बस मैं वो ही हूँ  ,

तेरे जाने पर,
गहन उदासी है
दरवाजे  पर दस्तक
कोई देता ही नहीं,
अपरिचय का बहता रेला ,
अब संवेदना ही नहीं 
कतई नहीं करूंगा कोई बहस  ,
नहीं तो तुम मुरझा   जाओगे 
पञ्च-पत्ती  के पुष्प की  तरह  .

रात भर बस वर्तमान को 
सींचता  ही रहूँगा ,
फिर तुम लौट कर ,
साल भर बाद आओगे.
और-
मेरी  दौड़ - धूप में 
पगतलियाँ  धरा नाप जायेंगी .

No comments:

Post a Comment

संवेदना तो मर गयी है

एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह . तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह . आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा . तेरा बदलना चुभ र...