मेरे पहले-पहले प्यार,
तुम सात समुन्दर पार,
कैसे हो ................
तुम शरद पूनो का ,
चाँद बन कर ,
ताकने जो चले आये ,
इतना पूछने का हक़ ,
मेरा भी बनता है,
आज भी तुम
चाँद के रूप में आ हँस रहे .
आज तुमको पकड़ने की कोशिश
कतई नहीं करूंगा ,
नहीं तो तुम भाग जाओगे
हिरन की तरह कुलांचे मारते .
रात भर बस तुम्हें
ताकता ही रहूँगा ,
फिर तुम लौट कर ,
साल भर बाद आओगे.
और-
मेरी सिसकियों के संगीत में
दिशाएँ भीग जायेंगी .
मेरे पहले-पहले प्यार,
तुम आजाओ इस पार,
क्या तुम आओगे ................
ओ ! शरद पूनो के चाँद ,
जब से तुम छोड़ कर गए ,
सब कुछ बदला-बदला सा है ,
बस मैं वो ही हूँ ,
तेरे जाने पर,
गहन उदासी है
दरवाजे पर दस्तक
कोई देता ही नहीं,
दरवाजे पर दस्तक
कोई देता ही नहीं,
अपरिचय का बहता रेला ,
अब संवेदना ही नहीं
अब संवेदना ही नहीं
कतई नहीं करूंगा कोई बहस ,
नहीं तो तुम मुरझा जाओगे
पञ्च-पत्ती के पुष्प की तरह .
रात भर बस वर्तमान को
सींचता ही रहूँगा ,
फिर तुम लौट कर ,
साल भर बाद आओगे.
और-
मेरी दौड़ - धूप में
पगतलियाँ धरा नाप जायेंगी .
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