Sunday 9 October 2011

पिल पड़ेंगे गुंडे सारे ,गुरु नंगे होते देखिये.

सरपंच का  ज़रा गुंडई  राज तो देखिये.
पीट दिये गये गुरू जी, खबर तो देखिये.

साधना के केंद्र सारे,अखाड़े बनते देखिये.
भाइयों को राजनीति के दंड पेलते देखिये .

आदमी बनने थे बच्चे, मुर्गा बनते देखिये.
लूट-डकैती-ह्त्या वाले ,धोंस जमाते देखिये .

यार तू क्यों रो रहा , अपनी रोजी  देखिये .
जगत गुरु के देश में .हजार कसाब देखिये.

जनाब चुप रहे तो यार ,आगे दृश्य  देखिये.
पिल पड़ेंगे गुंडे सारे ,गुरु नंगे होते देखिये.







No comments:

Post a Comment

संवेदना तो मर गयी है

एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह . तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह . आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा . तेरा बदलना चुभ र...